![विदेश नीति में भी 'विजेता' हैं मोदी, मौत की सजा पाए नेवी अफसरों की स्वदेश वापसी के मायने](https://akm-img-a-in.tosshub.com/aajtak/images/story/202402/65ca20d538a36-modi-qatar-sheikh-124451104-16x9.jpg)
विदेश नीति में भी 'विजेता' हैं मोदी, मौत की सजा पाए नेवी अफसरों की स्वदेश वापसी के मायने
AajTak
कतर में मौत की सजा पाए नेवी के 8 पूर्व अफसरों की रिहाई आसान नहीं थी. पर इस कठिन कार्य को संभव बनाया है भारत की सफल कूटनीति ने. यह भारत का दुनिया में बढ़ते वर्चस्व की एक और बानगी है.
कतर में जासूसी करने के आरोप में सजा पाए 8 भारतीयों की आजादी बताती है कि हिंदुस्तान की तूती विश्व कूटनीति में किस तरह बोल रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में विदेश नीति से जुड़े कुछ काम ऐसे हुए हैं, जो उन्हें अजात-शत्रु बनाते हैं. विदेशी धरती पर भारत के लिए चैलेंज बने उन मुद्दों की बात बाद में करेंगे, पहले संतोष जाहिर करें उन 8 भारतीय नेवी अफसरों की कतर से वतन वापसी पर, जिन्हें पिछले साल अक्टूबर में वहां मौत की सजा सुना दी गई थी.
अगर भारत का इतिहास देखें तो यही लगेगा कि 8 नेवी अफसरों को वापसी नामुमकिन थी.आजादी के बाद पाकिस्तान जैसे देश में भारत के कितने ही निर्दोंष नागरिकों को आजीवन काल कोठरी में बिताना पड़ा और कितनों को को सूली पर चढ़ा दिया गया. सरकारें सिर्फ विरोध ही जताती रहीं. पिछले साल अप्रैल में मल्लिकार्जुन खरगे ने अपने ट्वीट में लिखा था, भारत और कतर 2023 में राजनयिक संबंधों के 50वें वर्ष का जश्न मना रहे हैं. इसके अलावा भारतीयों का कतर में सबसे बड़ा प्रवासी समुदाय है. खरगे ने लिखा कि प्रधानमंत्री मोदी ने कतर में अपने समकक्ष को फीफा विश्व कप की शुभकामनाएं भेजीं, लेकिन हमारे बहादुरों के कीमती जीवन को बचाने के लिए हस्तक्षेप नहीं किया. कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने भी आरोप लगाया था कि क्या प्रधानमंत्री इस वजह से कतर पर दबाव बनाने में उत्साह नहीं दिखा रहे हैं, क्योंकि कतर का सॉवरेन वेल्थ फंड अदाणी इलेक्ट्रिसिटी, मुंबई में एक प्रमुख निवेशक है. क्या इसीलिए जेल में बंद पूर्व नौसेना कर्मियों के परिजन जवाब के लिए दर-दर भटक रहे हैं. केंद्र सरकार बताए कि पूर्व नौसेना के कर्मियों के साथ इस तरह का व्यवहार क्यों किया जा रहा है. आज जरूर खरगे और जयराम रमेश को अपनी बातों पर शर्मिंदगी महसूस हो रही होगी.
1- नेवी अफसरों की रिहाई, मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति का सबूत
दरअसल नेवी के 8 अफसरों की रिहाई के लिए खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने स्तर से प्रयास कर रहे थे.पिछले साल दिसंबर में कतर के अमीर शेख तमीम बिन हम्द अल-थानी से दुबई में हुए सीओपी 28 सम्मेलन से अगल से मुलाकात की थी. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने भी इस मीटिंग का जिक्र करते हुए बताया कि दोनों के बीच द्विपक्षीय संबंधों को लेकर एक अच्छी वार्ता हुई थी. दोनों देशों के बीच एक अहम समझौता हुआ था. इस समझौते के तहत भारत कतर से लिक्विफाइड नेचुरल गैस खरीदेगा.ये करार भारत की पेट्रोनेट एलएनजी लिमिटेड कंपनी ने कतर की सरकारी कंपनी के साथ हुआ है.दरअसल सरकार जब इस तरह के समझौते करती है उसके आगे पीछे कई तरह के निर्णायक फैसले और होते हैं. यही दिखाता है कि सरकार अगर किसी काम के लिए दृढ इच्छाशक्ति दिखा दे तो कौन सा ऐसा काम है जो संभव न हो जाए.
2- निज्जर को मुद्दा बनाने चला कनाडा अकेला पड़ा
कनाडा में एक खालिस्तानी कट्टरपंथी की अनसुलझी हत्या के लिए भारत को कटघरे में खड़ा करके आज राष्ट्रपति जस्टिन ट्रूडो भी जरूर पछता रहे होंगे.ट्रूडो ने घरेलू राजनीति को चमकाने के लिए निज्जर वाला दांव खेला था लेकिन, भारत की जबरदस्त जवाबी कूटनीति के चलते इस देश को लोग अब चरमपंथियों के पनाहगाहगार के रूप में देखते हैं. यही नहीं इस घटना के बाद से कनाडा की तुलना अब पाकिस्तान के साथ होने लगी है. खालिस्तान समर्थक सिख आतंकवादी के समर्थन के चलते ट्रूडो को अपने देश में शक की निगाह से देखा जाने लगा है. कनाडा के आरोपों और भारतीय राजनयिक को निष्कासित करने के जवाब में भारत ने भी कनाडाई राजनयिक को देश छोड़ने का हुक्म दिया था और कनाडा के नागरिकों के लिए वीजा सेवा को बंद कर दिया था.
![](/newspic/picid-1269750-20240726012131.jpg)
यूक्रेन के एक सैनिक की पत्नी लारिसा ने ये दावे तुर्किए में हुई एक बैठक के दौरान किए. इस बैठक में तुर्किए में यूक्रेन के राजदूत वासिल बोदनार भी मौजूद थे. यूक्रेन टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, लारिसा ने इस बैठक में दावा किया कि हमें यूकेन के सैनिकों के जो शव मिले हैं, जिन्हें न सिर्फ मारने से पहले बुरी तरह टॉर्चर किया गया था, बल्कि उनके कई ऑर्गन गायब भी थे.
![](/newspic/picid-1269750-20240725124833.jpg)
कमला हैरिस ने राष्ट्रपति पद के लिए पार्टी का नामांकन जीतने के लिए पर्याप्त डेमोक्रेटिक प्रतिनिधियों का समर्थन हासिल कर लिया. कमला हैरिस को राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी के लिए 1976 डेलिगेट्स से अधिक का समर्थन मिल चुका है. उन्होंने बाइडेन के रेस से पीछे हटने के 36 घंटे के भीतर ही पार्टी का समर्थन जुटा लिया.
![](/newspic/picid-1269750-20240725022115.jpg)
डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से राष्ट्रपति जो बाइडेन की जगह उम्मीदवारी के ऐलान के बाद कमला हैरिस का समर्थन बढ़ने लगा है. ताजा सर्वे में रजिस्टर्ड वोटर्स के बीच डोनाल्ड ट्रंप के मुक़ाबले कमला हैरिस को 2 प्रतिशत की बढ़त मिली, जहां कमला को 44% वोटर्स का समर्थन मिला तो ट्रंप को 42% वोटर्स ने पसंद किया. देखें US टॉप-10.