
विदेशों में इंडियन ने 'दक्षिण एशियाई' लेबल को किया खारिज, कहा- मिट रही हमारी पहचान, लग रहा यौन अपराधों का कलंक
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ब्रिटेन और अमेरिका में रहने वाले भारतीय प्रवासी खुद के लिए'दक्षिण एशियाई' शब्द के इस्तेमाल को खारिज कर रहे हैं. क्योंकि ये शब्द भारतीय समुदाय को कमतर करता है और इनकी पहचान को मिटा रहा है. क्योंकि, विदेशों में रहने वाले भारतीयों की एक विशिष्ट सभ्यतागत पहचान है. इस वजह से जब इन्हें दक्षिण एशियाई कहा जाता है, तो इसके साथ भारत की विशिष्टता भी चली जाती है.
भारतीय प्रवासियों के लिए दक्षिण एशियाई शब्द, उस क्षेत्र के दूसरे देशों के समुदायों को भी साथ कर देता है, जिनसे सांस्कृतिक रूप से इंडियन कम्युनिटी की कोई समानता नहीं है. इसके साथ ही दूसरे देशों के लोगों से जुड़ी आपराधिक पहचान भी इस एक शब्द की वजह से भारतीय लोगों को कलंकित और कमतर करती हैं.
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, जब कमला हैरिस ने अपना राष्ट्रपति अभियान शुरू किया, तो उन्होंने साउथ एशियन्स फॉर द पीपल नामक एक मंच की शुरुआत की. इससे भारतीय प्रवासियों में से कई लोगों ने 'दक्षिण एशियाई' लेबल पर अपनी नाराजगी जताई थी. लोगों का मानना था कि यह भारत की विशिष्ट पहचान को मिटा देता है. भारत कम से कम 2,000-3,000 साल पुराना है और 'दक्षिण एशिया' एक नया शब्द है जिसका मतलब भारत की पहचान को नकारना है.
ब्रिटेन और अमेरिका के प्रवासियों के दक्षिण एशियाई कहलाने से दिक्कत ब्रिटेन और अमेरिका में कई भारतीय इस लेबल के साथ आने वाली समस्याओं के बारे में तेजी से मुखर हो रहे हैं. दक्षिण एशियाई का अर्थ आमतौर पर भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका, भूटान और मालदीव के लोगों से है. पिछले महीने, इनसाइट यूके, जो खुद को 'ब्रिटिश हिंदुओं और भारतीयों का सामाजिक आंदोलन' बताता है. उसने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर इसी तरह की आपत्ति जताई थी.
इस एक शब्द से अपनी सांस्कृतिक विशिष्टता खो रहे भारतीय समुदाय इनसाइट यूके के मनु ने इंडिया टुडे डिजिटल को बताया कि एशियाई या एशियाई ब्रिटिश जैसे व्यापक शब्द भारतीय और अन्य देशों की पृष्ठभूमियों के बीच अंतर नहीं करते हैं. ये शब्द अलग-अलग समुदायों को एक साथ ले आते हैं और इसके साथ दूसरे समुदायों की बुराईयां भी हमारी पहचान के साथ जुड़ जाती है.
दूसरे समुदायों के बीच का अस्पष्ट अंतर भी हो रहा कम भारतीयों को दक्षिण एशियाई कहना तटस्थ लग सकता है, लेकिन यह एक महत्वपूर्ण अंतर को कम कर देता है. इनसाइट यूके ने बताया कि उदाहरण के लिए, ब्रिटिश भारतीयों और ब्रिटिश पाकिस्तानियों का प्रवास इतिहास, धार्मिक जनसांख्यिकी और ब्रिटेन में योगदान अलग-अलग है. उन्हें एक साथ 'एशियाई' या 'दक्षिण एशियाई' के रूप में लेबल करने से महत्वपूर्ण अंतर अस्पष्ट हो जाते हैं, चाहे वह वर्कफोर्स रिप्रेजेंटेशन हो, स्वास्थ्य परिणाम हो या सामाजिक अनुभव में हो.
'दक्षिण एशियाई' शब्द से हजारों सा पुराना है 'भारतीय' इंडियन कम्युनिटी की विशिष्टता को धुंधला करता है 'दक्षिण एशियाई' शब्द ब्रिटेन में 1.8 मिलियन से अधिक और अमेरिका में लगभग 4.8 मिलियन भारतीय हैं. उत्तरी अमेरिका के हिंदुओं के गठबंधन (CoHNA) की पुष्पिता प्रसाद ने इंडिया टुडे डिजिटल को बताया कि हमारी पहचान सिर्फ जमीन से परिभाषित नहीं होती, यह एक सभ्यतागत और सांस्कृतिक स्थान है जो हजारों सालों से अस्तित्व में है. इस बात को लेकर कोई भ्रम नहीं है कि भारतीय कौन हैं. लेकिन इस स्पष्टता को धुंधला करने, भारतीय पहचान की विशिष्टता को कम करने और उसे कमजोर बनाने के लिए जानबूझकर प्रयास किया जा रहा है और इसी के तहत हम पर दक्षिण एशियाई का लेबल थोपा जा रहा है.

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