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वरवरा राव: कवि जीता है अपने गीतों में, और गीत जीता है जनता के हृदय में…

वरवरा राव: कवि जीता है अपने गीतों में, और गीत जीता है जनता के हृदय में…

The Wire
Sunday, March 12, 2023 02:26:45 PM UTC

विशेष: मुक्तिबोध ने कहा था ‘तय करो किस ओर हो तुम?’ और ‘पार्टनर, तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है?’ वरवरा राव इस सवाल से आगे के कवि हैं. वे तय करने के बाद के तथा पॉलिटिक्स को लेकर वैज्ञानिक दृष्टि रखने वाले कवि हैं. उनके लिए कविता स्वांतः सुखाय या मनोरंजन की वस्तु न होकर सामाजिक बदलाव का माध्यम है.

वरवरा राव एक ऐसी शख्सियत का नाम है जो सत्ता के आगे न झुकता है, न दमन से टूटता है. वह समकाल की आवाज बन जाता है. यह आवाज फासीवाद के विरुद्ध प्रतिरोध की आवाज है. इस अंधेरे के खिलाफ रोशनी है, एक उम्मीद है. वह कलम उठाता है और कविता लिखता है. कविता ललकार बन जाती है, कुछ इस तरह: ‘जीवन का बुत बनानाकाम नहीं है शिल्पकार काउसका काम है पत्थर को जीवन देनामत हिचकोवो शब्दों के जादूगर!जो जैसा है, वैसा कह दोताकि वह दिल को छू ले’ ‘कवि बड़ा खतरनाक है/वह कविता लिखता है/जीवन के गीत गाता है/क्रांति की धुन पर थिरकता है/हां, उनके लिए कवि बड़ा खतरनाक है/…और उसके जीवन को खत्म कर देने के/हजार उपक्रम जारी है/पर यह सत्ता है जो काट रही उसी डाल को/जिस पर वह बैठी है’. ‘सत्य को झूठ/झूठ को सत्य बनाने के खेल के/वे उस्ताद हैं/हत्या की ऐसी-ऐसी तरकीबें हैं उनके पास/कि हत्या, हत्या नहीं सामान्य मौत लगे/ठंडी मौत मारना एक सिलसिला है/जो चल पड़ा है/उन्होंने मौत पर/जश्न मनाने वालों का कुनबा खड़ा कर लिया है/लोकतांत्रिक मर्यादाएं वस्त्र हो चुकी हैं/फादर ने तो यही पूछा था/‘क्या है मेरा अपराध?’/…जब राजा बहरा और अंधा हो/तो ऐसी आवाज नहीं सुनी जाती/अपना नंगापन भी उसे नहीं दिखता.’ ‘कब डरता है दुश्मन कवि से/जब कवि के गीत अस्त्र बन जाते हैं/वह कैद कर लेता है कवि को/फांसी पर चढ़ाता है/फांसी के तख्ते के एक ओर होती है सरकार/दूसरी ओर अमरता/कवि जीता है अपने गीतों में/और गीत जीता है जनता के हृदय में’

ऐसी कविताओं से ही वरवरा राव जाने जाते हैं. वे सीधी, सरल, सच्ची और साफ-साफ बात करते हैं. उनकी कविताएं दिल-दिमाग में उतरती हैं. इनमें सामाजिक बदलाव, जीवन संघर्ष और जागरण के संदेश हैं. उनके लिए कविता का यही काम है. वह लोगों को रोटी नहीं दे सकती है, लेकिन रोटी के लिए संघर्ष की प्रेरणा जरूर दे सकती है. इसी अर्थ में वे पत्थर को जीवन देने की बात करते हैं.

मुक्तिबोध ने कहा था ‘तय करो किस ओर हो तुम?’ और ‘पार्टनर, तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है?’ वरवरा राव इस सवाल से आगे के कवि हैं. वे तय करने के बाद के तथा पॉलिटिक्स को लेकर वैज्ञानिक दृष्टि रखने वाले कवि हैं. उनके लिए कविता स्वांतः सुखाय या मनोरंजन की वस्तु न होकर सामाजिक बदलाव का माध्यम है. इसलिए उनके लिए कविता करना या कहिए उनका संपूर्ण रचना कर्म सांस्कृतिक काम है. वहां संस्कृति और राजनीति के अंतर्संबंधों को लेकर कोई दुविधा या भ्रम नहीं है. उनकी समझ है कि सामाजिक बदलाव और शोषण उत्पीड़न से मुक्त मानव समाज की रचना के संदर्भ में कवि, कलाकार उसी तरह का योद्धा है जिस तरह एक राजनीतिक कार्यकर्ता. अपनी स्वायत्तता और विशिष्टता के बावजूद मानव समाज के संघर्ष में दोनों की भूमिका है.

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