लाभ कमाने वाले शैक्षणिक संस्थान आयकर छूट का दावा नहीं कर सकते: सुप्रीम कोर्ट
The Wire
सुप्रीम कोर्ट आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के उस फैसले के ख़िलाफ़ दायर याचिकाएं सुन रहा था जिसमें कहा गया था कि टैक्स छूट के लिए किसी संस्था की गतिविधियों की जांच की ज़रूरत होगी. शीर्ष अदालत ने अपने निर्णय में कहा कि किसी चैरिटेबल संस्थान को आयकर राहत तब मिलेगी जब वह किसी लाभकारी गतिविधि में संलग्न न हो.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि कोई भी सोसाइटी, फंड, ट्रस्ट या संस्था जो ‘शिक्षा के धर्मार्थ उद्देश्य’ से स्थापित किए जाने का दावा कर रही है, उसे आयकर की धारा 10 (23 सी) के तहत छूट का दावा करने के लिए शिक्षा से ‘पूरी तरह’ संबंधित होना चाहिए.
हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को यह कहते हुए कि भारतीय संविधान शिक्षा को दान के समान मानता है और इसे कभी व्यापार या कारोबार के रूप में नहीं देखा जा सकता है, कहा कि कोई धर्मार्थ संस्थान केवल तभी आयकर राहत का हकदार होगा जब वह किसी भी लाभकारी गतिविधि में संलग्न न हो.
1961 के आयकर अधिनियम की धारा 10 (23C) में धर्मार्थ ट्रस्टों, सोसाइटियों या संस्थानों को ‘केवल’ शैक्षणिक उद्देश्यों के लिए कर छूट प्रदान की जाती है, न कि लाभ के उद्देश्यों के लिए.
हालांकि, 2008 और 2015 में शीर्ष अदालत के दो पिछले निर्णयों में ‘केवल’ शब्द की जो व्याख्या की गई थी, उसका अर्थ यह था कि निर्धारण के लिए प्रमुख बात यह थी कि क्या मूल या मुख्य गतिविधि शिक्षा थी या नहीं, न कि यह कि क्या संयोग से ही कुछ लाभ अर्जित किए गए.