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लता मंगेशकर: वक़्त से परे अगर मिल गए कहीं…

लता मंगेशकर: वक़्त से परे अगर मिल गए कहीं…

The Wire
Sunday, February 13, 2022 08:58:35 AM UTC

स्मृति शेष: लता मंगेशकर की अविश्वसनीय सफलता के पीछे उनकी आवाज़ की नैसर्गिक निश्छलता और सरलता का बहुत बड़ा हाथ है. जिस प्रकार उनकी आवाज़ हर व्यक्ति, समुदाय और वर्ग के लोगों को समान रूप से प्रभावित करने में सफल होती है वह इस बात का सूचक है कि वो आवाज़ अपने दैहिक कलेवर से उठकर आत्मा में निहित मानवीयता को स्पंदित करने में सक्षम हो जाती है.

पर 1949 के उस जून में रेडियो स्टेशन के डायरेक्टर ने जब गायिका का नाम पता कर घोषणा की–’गायिका- लता मंगेशकर’, तब शायद किसी ने यह कल्पना नहीं की होगी कि यह नाम भारतीय सिनेमा के संगीत का पर्याय बन जाएगा.

क्या वजह है कि फिल्म गायकी जो हमेशा से शास्त्रीय संगीत के मुक़ाबले सस्ती और चलताऊ समझी जाती थी, उसे लता मंगेशकर ने अपनी गायकी के दम से वह स्वरूप दे दिया कि चाहे वह उच्च मध्यवर्ग या आभिजात्य वर्ग के ड्राइंग रूम हों या मेहनतकश मजदूर या कामगारों के ठिकाने, उन सबकी ज़बान पर यह संगीत गूंज रहा था. इन सवालों का जवाब पाने के लिए सबसे अहम है कि हम लता मंगेशकर की गायकी को समझने का प्रयास करें.

ऐसा तो नहीं था कि लता से पहले फिल्म जगत में गायिकाओं की कोई कमी थी. शमशाद बेग़म , ज़ोहराबाई अंबालेवाली, अमीरबाई कर्नाटकी, नूरजहां, ये सब उस समय के वो नाम थे जो अपनी एक खास आवाज़ के लिए जाने जाते थे. और ये आवाज एक तरह से व्यावसायिक सिनेमा की अपील को बढ़ाने के उदेश्य से थोड़ी गहरी, भारी और मादक होने की मांग चाहती थी.

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