रईसी, कंजूसी और ढेर-सारे प्रेम संबंध, कहानी हैदराबाद के उन निजामों की, जिनके चर्चे आज भी हैं
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17वीं सदी में समरकंद शहर के एक सूफी परिवार का मुखिया घूमते-घामते दिल्ली आया और कुछ ही सालों बाद हैदराबाद को मिला पहला निजाम. लगातार 7 पीढ़ियों ने राज्य पर शासन किया. इनमें से 7वें निजाम उस्मान अली खान को एक साथ उनकी अमीरी, कंजूसी और तगड़ी यौन इच्छाओं के लिए जाना जाता रहा. हालांकि उन्हीं के समय उस्मानिया यूनिवर्सिटी की नींव भी पड़ी.
हैदराबाद के 8वें निजाम मुकर्रम जाह का निधन तुर्की में लगभग नब्बे साल की उम्र में हो गया. उनकी रंगीनमिजाजी और रईस तौर-तरीकों के किस्से मशहूर रहे. वहीं उनके पिता यानी हैदराबाद के 7वें निजाम मीर उस्मान अली को दुनिया के सबसे अमीर लेकिन बेहद कंजूस राजा के तौर पर देखा जाता था. जितने निजाम, उतने ही रंगारंग किस्से. हजारों किलोमीटर दूर से राजाओं के देश हिंदुस्तान में आकर हैदराबाद पर हुकूमत करने वाले निजामों की कहानी भी अनोखी है.
हैदराबाद के निजामों की कहानी शुरू होती है उज्बेकिस्तान के समरकंद शहर से. यहां वे राजे-महाराजे नहीं, बल्कि सूफी परिवार से हुआ करते थे. समरकंद में उनकी बहुत पूछ थी इसलिए वहां के काजी ने परिवार के मुखिया ख्वाजा आबिद को अपने यहां ऊंचा ओहदा भी दे दिया. काजी के कामकाज के सिलसिले में ही यहां-वहां घूमते हुए साल 1655 में वे हिंदुस्तान पहुंचे.
तब दिल्ली पर शाहजहां की हुकूमत थी. वहीं दक्षिण में औरंगजेब अपने ही पिता को हराकर दिल्ली के ताज पर कब्जा करने की तैयारी में था. इसी समय ख्वाजा आबिद की मुलाकात औरंगजेब से हुई. ख्वाजा न केवल ज्ञान, बल्कि जंग में भी आगे थे, जिसपर खुश औरंगजेब ने उन्हें सेना में खान का ओहदा दे दिया. यहां से ख्वाजा और उनके वंशजों का कुनबा आगे ही बढ़ता चला गया.
इन्हीं के पोते कमरुद्दीन को निजाम-ए-मुल्क की पदवी मिली और इस तरह से हैदराबाद के हिस्से राजा-महाराजा, नवाब या सुल्तान नहीं, बल्कि निजाम आ गए. निजामों की ये हुकूमत सात पीढ़ियों तक चलती रहीं, जो आजादी के बाद हैदराबाद के हिंदुस्तान में मिलने के साथ खत्म हुई. हालांकि अब भी 7वीं निजाम की संतान को निजाम की तरह ही जाना जाता रहा, जिनकी हाल ही में तुर्की में मौत हुई.
गोलकुंडा किले का जिक्र इतिहास में बार-बार होता है. इसकी संपन्नता इतनी थी, कि इसे जीतने के लिए लोगों में बार-बार ठनती रही. 17वीं सदी में भी हैदराबाद संपन्न जगह थी, जहां मोतियों और बहुमूल्य धातुओं का काम होता. कच्चे माल का भी ये भंडार था. निजामों के साम्राज्य ने इसमें कल्चर का भी तड़का लगा दिया. यहां कई दक्षिण भारतीय भाषाओं के साथ तुर्की और अरबी भी बोली जाने लगी. प्रशासनिक तौर पर भी निजामों ने ठीक-ठाक काम किया.
आसफ जाह 4 के समय में राज्य में तूफान और सूखा जैसी आपदाएं आईं. तब तत्कालीन निजाम ने राज्य को 16 जिलों में बांट दिया ताकि बंदोबस्त ठीक ढंग से हो सके. इसी समय साल 1856 में हैदराबाद देश का पहला राज्य बना, जिसने सती प्रथा बंद करवा दी.
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