मैरिटल रेप: अधिवक्ता रेबेका जॉन ने कहा- आईपीसी की धारा 375 में मिले अपवाद में ‘सहमति’ की शर्त निहित
The Wire
दिल्ली हाईकोर्ट वर्तमान में मैरिटल रेप को अपराध क़रार देने के अनुरोध की याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है. याचिकाकर्ताओं ने आईपीसी की धारा 375 की संवैधानिकता को यह कहते हुए चुनौती दी है कि यह विवाहित महिलाओं के साथ उनके पतियों द्वारा किए गए यौन उत्पीड़न के मामले में भेदभाव करती है.
नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को कहा कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की पूर्ववर्ती धारा 377 और बलात्कार कानून में विसंगति थी जो एक पति को अपनी पत्नी के साथ बिना सहमति के यौन संबंध बनाने समेत अप्राकृतिक यौन संबंध के खिलाफ अभियोजन से संरक्षण देती है. इस धारा को उच्चतम न्यायालय ने 2018 में अपराध की श्रेणी से हटा दिया था.
उच्च न्यायालय ने उन याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की, जिनमें वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी में रखने का अनुरोध किया गया है.
जस्टिस राजीव शकधर और जस्टिस सी. हरि शंकर की पीठ मामले को सुन रही है सुनवाई के दौरान जस्टिस शकधर ने कहा, ‘आईपीसी की धारा 377 (अप्राकृतिक यौन संबंध के लिए सजा) को अपराधमुक्त किए जाने से पहले, मैं विषमलैंगिक (हेट्रोसेक्सुअल) जोड़ों के बारे में बात कर रहा हूं, क्या धारा 375 और धारा 377 में विसंगति नहीं थी. विडंबना यह है कि सुखी वैवाहिक जीवन में यह जारी रहा और किसी ने शिकायत नहीं की.’
न्यायाधीश ने कहा, ‘इस तथ्य के बावजूद कि आप्रकृतिक यौन संबंध भी यौन क्रिया का हिस्सा है और इसलिए अगर इसमें सहमति है तो यह बलात्कार नहीं है. लेकिन, उच्चतम न्यायालय के फैसले से पहले धारा 377 की विसगंति प्रभावी रही.’