
मुस्लिम समुदाय की फर्टिलिटी रेट क्यों बनती है मुद्दा, क्यों ये दुनिया में सबसे ज्यादा है?
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पीएम नरेंद्र मोदी ने रविवार को एक रैली को संबोधित करते हुए कहा था कि कांग्रेस सत्ता में आई तो वो देश की दौलत घुसपैठियों और ज्यादा बच्चे वाले परिवारों को बांट सकती है. माना जा रहा है कि ज्यादा बच्चों वाली बात मुस्लिमों पर आरोप थी. लेकिन क्या वाकई वे ज्यादा बच्चों को जन्म देते हैं. अगर हां तो क्या ऐसा भारत में ही है, या दुनिया में भी यही पैटर्न है.
मुस्लिम परिवारों के ज्यादा संतानें पैदा करने पर हमेशा ही विवाद रहा. कम से कम भारत के मामले में हम ये देख पाते हैं. अक्सर आरोप लगता रहा कि ये धार्मिक आबादी कई हथकंडे अपना रही है ताकि उनकी संख्या सबसे ज्यादा हो जाए. ये बात ग्लोबल लीडर भी कह रहे हैं. लेकिन क्या वाकई ये आरोप सच है, या फिर केवल एक भ्रम है. जानिए, किस धर्म की फर्टिलिटी रेट कितनी है और इसका क्या असर होगा.
प्रजनन दर या फर्टिलिटी रेट यानी किसी खास आबादी में 15-49 साल के बीच की महिला, औसतन कितने बच्चों को जन्म दे सकती है.
दुनिया में सबसे ज्यादा अनुयायी इस्लाम से होंगे
साल 1900 में मुस्लिमों की आबादी दुनिया की कुल आबादी का 12% थी. लेकिन अगली सदी के दौरान ये पॉपुलेशन तेजी से बढ़ी. अब प्यू रिसर्च सेंटर दावा कर रहा है कि साल 2050 तक ये धार्मिक पॉपुलेशन 30 फीसदी हो जाएगी. बता दें कि साल 2010 में ही इस्लाम 1.6 बिलियन अनुयायियों के साथ दुनिया का दूसरा बड़ा धार्मिक मजहब बन गया. प्यू रिसर्च में साल-दर-साल आंकड़े देते हुए बताया गया कि इनकी धार्मिक आबादी तेजी से बढ़ रही है, जो साल 2050 तक क्रिश्चियेनिटी को हटाकर दुनिया की सबसे बड़ी धार्मिक आबादी होगी.
मुस्लिमों में प्रजनन दर अधिक
फ्यूचर ऑफ वर्ल्ड रिलीजन प्रोजेक्ट के तहत हुए शोध में बताया गया कि किसी धार्मिक आबादी का बढ़ना-घटना काफी हद तक इससे भी प्रभावित होता है कि उसकी महिलाएं कितनी संतानों को जन्म दे रही हैं. ये फर्टिलिटी रेट है. मौजूदा फर्टिलिटी रेट की बात करें तो मुस्लिम महिलाओं की प्रजनन दर सबसे ज्यादा मानी जा रही है. ये बात ग्लोबल और लोकल दोनों ही मामलों में दिखती है.

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