
मुग़लों का इतिहास न पढ़ाने के फैसले के पीछे कौन-सी समझदारी है?
The Wire
मुग़लों का इतिहास तो पढ़ाए न जाने के बावजूद इतिहास ही रहेगा- न बदलेगा, न मिटेगा. लेकिन छात्र उससे वाक़िफ़ नहीं हो पाएंगे और उनका इतिहास ज्ञान अधूरा व कच्चा रह जाएगा.
उत्तर प्रदेश के स्कूल-कॉलेजों व शिक्षा संस्थानों पर यह तोहमत बहुत पुरानी है कि उनमें पढ़ाई-लिखाई छोड़कर सब-कुछ होता है. लेकिन पिछले दिनों योगी आदित्यनाथ सरकार ने प्रदेश की इंटर कक्षाओं में मुगलों का इतिहास नहीं पढ़ाने के फैसले के बाद उस पर एक चर्चा में मैंने इस तोहमत का जिक्र किया तो एक ‘समझदार’ ने गुस्साते हुए कहा- ‘अपनी राय बदल लो. पढ़ाई-लिखाई नहीं होती तो पढ़ाई में यह ‘कटौती’ ही क्योंकर होती?’ एक अजीब-सी मुश्किल में हूं इन दिनों— मेरी भरपूर नफ़रत कर सकने की ताक़त दिनोंदिन क्षीण पड़ती जा रही
मेरी ढिठाई कि मैंने राय नहीं बदली और पूछने लगा- ‘इस कटौती का हासिल बताइए. इससे छात्रों का ज्ञान बढ़ेगा या अज्ञान?’ अंग्रेज़ी से नफ़रत करना चाहता जिन्होंने दो सदी हम पर राज किया तो शेक्सपीयर आड़े आ जाते जिनके मुझ पर न जाने कितने एहसान हैं
समझदार ने चौंककर पूछा- ‘क्या मतलब?’ मुसलमानों से नफ़रत करने चलता तो सामने ग़ालिब आकर खड़े हो जाते अब आप ही बताइए किसी की कुछ चलती है उनके सामने?
मैंने कहा- ‘यही कि पढ़ाए न जाने के बावजूद मुगलों का इतिहास तो इतिहास ही रहेगा- न बदलेगा, न मिटेगा. लेकिन छात्र उससे वाकिफ नहीं हो पाएंगे और उनका इतिहास ज्ञान अधूरा व कच्चा रह जाएगा. सरकार थोड़े से विवेक से काम लेकर उन्हें इससे बचा सकती थी- बस, इस इतिहास को जिस भी नजरिये से पढ़ाती पर पढ़ाती रहती.’ सिखों से नफ़रत करना चाहता तो गुरुनानक आंखों में छा जाते और सिर अपने आप झुक जाता
