मायावती का सपना, 2024 चुनाव को लेकर क्या रणनीति... यूपी में BSP के नए चीफ विश्वनाथ पाल ने बताया पूरा प्लान
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बसपा प्रमुख मायावती ने अति पिछड़ा समुदाय से आने वाले विश्वनाथ पाल को उत्तर प्रदेश का अध्यक्ष नियुक्त किया है. विश्वनाथ पाल को पार्टी की कमान भले ही मिल गई है, लेकिन उनके सामने पार्टी को खड़ी करने की बड़ी चुनौती है. ऐसे में उन्होंने मौजूदा राजनीतिक चुनौतियों और भविष्य के प्लान को लेकर आजतक से खास बातचीत की.
उत्तर प्रदेश के शहरी निकाय चुनाव से पहले बहुजन समाज पार्टी में बड़ा बदलाव हुआ है. बसपा अध्यक्ष मायावती ने प्रदेश संगठन में बड़ा फेरबदल करते हुए भीम राजभर को हटाकर विश्वनाथ पाल को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया है. बसपा की कमान विश्वनाथ को ऐसे समय मिली, जब पार्टी अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. बसपा के दलित वोटबैंक में सेंध लग चुकी है तो अति पिछड़ी जातियां पूरी तरह से खिसक चुकी है. ऐसे में विश्वनाथ पाल बसपा को यूपी में कैसे दोबारा से खड़ा कर पाएंगे और 2024 के लिए क्या प्लान है?
बसपा प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद विश्वनाथ पाल ने aajtak.in को अपना पहला इंटरव्यू दिया. इस दौरान उन्होंने पार्टी की चुनौतियों से लेकर भविष्य के प्लान और गैर-जाटव दलित व अति पिछड़ा समुदाय को फिर से बसपा से जोड़ने के मुद्दे पर लंबी बातचीत की. विश्वनाथ पाल ने माना कि मौजूदा दौर में बसपा के सामने चुनौती है, लेकिन यह काम नामुमकिन भी नहीं है और मायावती की उम्मीदों पर वह खरे उतरकर दिखाएंगे.
यूपी में आज कहां खड़ी है बसपा? विश्वनाथ पाल कहते हैं कि बसपा सिर्फ एक राजनीतिक दल नहीं है, बल्कि एक मिशन है. बसपा एक कैडर आधारित पार्टी है, जो बाबा साहेब की विचाराधारा और कांशीराम के बताए हुए रास्ते पर चल रही है. राजनीतिक परिस्थितियों के चलते यह स्थिति हुई है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि बसपा खत्म हो गई है. बसपा दलित, पिछड़े और गरीबों के दिलों में बसी हुई है, उसे खत्म नहीं किया जा सकता है. दलित और अति-पिछड़े समाज को सम्मान के साथ जीने का हक बसपा सरकार में मिला है और लोगों का भरोसा अभी भी बसपा से ही है. दलित, पिछड़े और गरीबों का भरोसा हमें ताकत दे रहा है और हम मजबूती के साथ वापसी करेंगे.
अति पिछड़े को कैसे दोबारा वापस लाएंगे? यूपी में गैर-जाटव दलित और अति पिछड़ा समुदाय बीजेपी का कोर वोटबैंक बन चुका है. इन्हें दोबारा से कैसे वापस लाने के सवाल पर विश्वनाथ पाल कहते हैं कि उत्तर प्रदेश की सियासत में अति पिछड़े समुदाय को राजनीतिक ताकत कांशीराम और मायावती ने दी है. बसपा में अति पिछड़ी जातियों के नेता को सियासी अहमियत और जो सम्मान मिला है, वो न तो उन्हें सपा ने दिया है और न ही बीजेपी. हिंदुत्व के नाम पर अति पिछड़ी जातियों को बरगलाकर बीजेपी ने अपना हित साधा है, लेकिन ओबीसी जातियों का कोई भला नहीं हुआ है. अति पिछड़ी जातियों को न तो सत्ता में भागेदारी मिली और न ही राजनीतिक रूप से आगे बढ़ाया गया है. इस बात को अति पिछड़ी जातियां बखूबी तरीके से समझ रही हैं.
विश्वनाथ पाल कहते हैं कि बसपा अध्यक्ष मायावती ने मेरे जैसे एक गरीब और अति पिछड़े समुदाय से आने वाले को उत्तर प्रदेश जैसे राज्य का अध्यक्ष बनाकर सिर्फ पाल समाज का नहीं, बल्कि अति पिछड़ी जातियों का भी सम्मान बढ़ाया है. इससे अति पिछड़ी जातियों का भरोसा बसपा के प्रति और भी मजबूत होगा. अति पिछड़ी जातियों को बीजेपी ठगने का काम करती है तो वहीं बसपा उन्हें सम्मान देने का काम करती है. अति पिछड़ी जातियों को बसपा संगठन में अहमियत देने के साथ-साथ हम उनके मुद्दों को लेकर भी संघर्ष करेंगे.
बसपा के प्रति कैसे भरोसा कायम करेंगे? 2012 के बाद से बसपा का सियासी ग्राफ लगतार गिरता जा रहा है और पार्टी खत्म होने की कगार पर खड़ी है. ऐसे में पार्टी को दोबारा से कैसे खड़ी करने के सवाल पर विश्वनाथ पाल कहते हैं कि राजनीतिक परिस्थितियों के चलते बसपा को चुनावी हार मिली है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि पार्टी खत्म हो गई. 2007 में हम पूर्ण बहुमत के साथ सरकार में थे. 2012 के चुनाव में बीजेपी को कहीं चार हजार वोट मिले तो कहीं पांच हजार, लेकिन किसी ने भी यह नहीं कहा कि बीजेपी खत्म हो गई. बसपा को हर एक सीट पर 20 से 30 हजार वोट मिले. इसके बावजूद कहा जा रहा है कि बसपा खत्म हो गई.
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