मनोज झा के 'ठाकुर को मारो' वाले बयान को मुद्दा RJD ने ही बनवाया, जानिये पूरी फिक्सिंग की कहानी
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संसद में मनोज झा के भाषण पर RJD के ही विधायक चेतन आनंद 5 दिन तक चुप रहे. फिर अचानक पिता के साथ धावा बोल देना भी उतना ही अजीब है जितना लालू यादव का अपने विधायक के परिवार से न मिलना - वैसे भी बिहार में आनंद मोहन की राजनीति का सीधा फायदा मिलता तो लालू यादव को ही है.
बिहार में जो ठाकुर-ब्राह्मण की लड़ाई चल पड़ी है, उसका निशान कुछ और नहीं बल्कि वोट बैंक की राजनीति है. पूरे वाकये के अलग अलग पहलुओं को एक साथ समझें तो तस्वीर काफी हद तक साफ हो जाती है. ये भी समझ में आता है कि लड़ने वाले तो सिपाही हैं, रणनीति तो एक ही सेनापति की है.
कौन क्या कह रहा है, इसके बजाय ये समझना जरूरी है कि क्यों और कब कह रहा है? और तभी ये भी समझ में आता है कि मोर्चे पर तो बस मोहरों को उतार दिया गया है, रिंग मास्टर तो अगले चुनाव की तैयारी कर रहा है.
कहने को तो सवर्ण जातियों के दो नेता आमने सामने लड़ते नजर आ रहे हैं, लेकिन ये अलग अलग राजनीतिक दलों के तो हैं नहीं. एक ही पार्टी आरजेडी के नेता हैं. दोनों नेताओं के भी एक ही नेता हैं - लालू यादव.
बिहार की राजनीति में मुर्गे की लड़ाई जैसा फील दे रहे दो नेताओं के झगड़े में बहुत सारे लोचे भी हैं. खबर तो सूत्रों के हवाले से ही आई है, लेकिन लालू यादव का आनंद मोहन के परिवार से न मिलना, चेतन आनंद का मनोज झा के भाषण के पांच दिन बाद रिएक्शन देना - और फिर आनंद मोहन का मोर्चा संभाल लेना.
जैसे कोई WWE का मुकाबला चल रहा हो
सबसे पहले उस घटना की बात करते हैं, जिसके आधार पर इस झगड़े का पूरा ताना बाना बुना गया लगता है. लोक सभा से नारी शक्ति वंदन अधिनियम के पास हो जाने के बाद राज्य सभा में होने वाली बहस में आरजेडी सांसद मनोज झा भाषण देते हैं. चूंकि लोक सभा में आरजेडी का जीरो बैलेंस है, इसलिए वहां तो ऐसा कुछ होना मुमकिन भी नहीं था.
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