मथुरा में मांस बिक्री पर रोक का असली मक़सद और संभावित नतीजे क्या हैं?
The Wire
योगी सरकार के मथुरा में मीट बैन के आदेश की वैधता पर कोई विवाद नहीं है क्योंकि इस पर सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला पहले से ही मौजूद है, लेकिन इसके असली इरादे और संभावित परिणामों पर निश्चित ही बहस होनी चाहिए क्योंकि ये बड़े पैमाने पर लोगों के हक़ों, उनकी आजीविका और सुरक्षा से जुड़ा है.
गत 30 अगस्त को उत्तर प्रदेश सरकार ने मथुरा में मांस और शराब की बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की घोषणा की है. आदेश का अनुपालन कैसे होगा, इस पर अधिकारी काम कर रहे हैं.
इस प्रकार के प्रतिबंध हरिद्वार, ऋषिकेश, वृंदावन, बरसाना, अयोध्या, चित्रकूट, देवबंद, देवा शरीफ़ और मिश्रिख-नैमिष्यारण्य में पहले से लागू हैं. हरिद्वार में तो यह 1956 से लागू है.
देश में मांस की दुकानों की अनुमति प्रायः मंदिरों के मुख्य द्वार से 100 मीटर की तथा उनकी परिधि से 50 मीटर की दूरी पर ही दी जाती रही है, हालांकि यह राज्यों की मीट शॉप लाइसेंसिंग पॉलिसी पर निर्भर करता है- वाराणसी में यह दूरी 250 मीटर है. मथुरा की तर्ज पर दिए गए आदेश में समूचा म्युनिसिपल एरिया आता है.
उपरोक्त आदेश की वैधता के विषय में कोई विवाद नहीं है क्योंकि इस पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला पहले से ही मौजूद है, लेकिन इसके असली इरादों और संभावित परिणामों पर निश्चित ही बहस होनी चाहिए क्योंकि ये बड़े पैमाने पर लोगों के अधिकारों, उनकी आजीविका और स्वयं-स्थापित गोरक्षक या धार्मिक-सांस्कृतिक मूल्यों के स्वयंभू रक्षक टाइप लोगों से उनकी सुरक्षा से जुड़ा है.