'भ्रूण को अजन्मा इंसान माना जाए', सुप्रीम कोर्ट के गर्भपात वाले फैसले पर बोला जमात-ए-इस्लामी हिंद
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जमात-ए-इस्लामी हिंद के उपाध्यक्ष प्रोफेसर मोहम्मद सलीम इंजीनियर ने शनिवार को अपने मुख्यालय में मीडियाकर्मियों को संबोधित करते हुए कई मुद्दों पर अपनी प्रतिक्रिया दी. उन्होंने गर्भपात को एक नैतिक अपराध बताते हुए सुप्रीम कोर्ट से इस पर सुनाए गए फैसले की समीक्षा करने की अपील की है.
जमात-ए-इस्लामी हिंद (JIH) ने गर्भपात को एक नैतिक अपराध बताते हुए सुप्रीम कोर्ट से इस पर सुनाए गए फैसले की समीक्षा करने की अपील की है. जिसमें कोर्ट ने सभी महिलाओं, विवाहित और अविवाहितों को 24 सप्ताह तक के भ्रूण के गर्भपात का अधिकार दिया है. जमात-ए-इस्लामी हिंद के उपाध्यक्ष प्रोफेसर मोहम्मद सलीम इंजीनियर ने शनिवार को अपने मुख्यालय में मीडियाकर्मियों को संबोधित करते हुए कई मुद्दों पर अपनी प्रतिक्रिया दी.
दरअसल, शीर्ष अदालत ने हाल ही में फैसला सुनाया है कि गर्भपात के अधिकारों में विवाहित और अविवाहित महिलाओं के बीच कोई अंतर नहीं होना चाहिए. गर्भपात के अधिकारों में अविवाहित महिलाओं को भी शामिल किया जाना चाहिए. उसी फैसले में अदालत ने यह भी फैसला सुनाया कि महिलाओं को "प्रजनन स्वायत्तता" होनी चाहिए और पति या परिवार के किसी अन्य सदस्य की सहमति की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए.
पत्रकारों के एक सवाल के जवाब में जेआईएच महिला विंग की सचिव रहमथुन्निसा ने कहा कि गर्भपात के अधिकार को जनता की मांग से नहीं जोड़ा जा सकता है. उन्होंने मांग की कि सरकार और अदालतों को भ्रूण के जीवन सहित हर जीवन की रक्षा करनी चाहिए.
यह कहते हुए कि भ्रूण को एक अजन्मे इंसान के रूप में माना जाना चाहिए, दो जेआईएच नेताओं ने कहा कि चूंकि एक भ्रूण या एक अजन्मा बच्चा अपने अधिकारों की रक्षा नहीं कर सकता है, इसका मतलब यह नहीं है कि हम केवल सुविधा के कारणों के लिए उन्हें अपनी मर्जी से हटा सकते हैं. दोनों नेताओं ने कहा कि यह हत्या है और इसलिए अति चिकित्सीय मामलों को छोड़कर गर्भपात की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. उन्होंने कहा कि गर्भपात के व्यापक कानूनी अधिकार से महिलाओं पर अत्याचार बढ़ेगा.
महिलाओं के खिलाफ बढ़ रहा अपराध
रहमथुन्निसा ने कहा, “अंकिता भंडारी की हत्या, चंडीगढ़ विश्वविद्यालय की लड़कियों के वीडियो वायरल करने की घटना और कानपुर में एक गर्ल्स हॉस्टल की घटना हमारे नैतिक मूल्यों में तेजी से गिरावट की ओर इशारा करते हैं. नवीनतम राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार, भारत में 2021 में महिलाओं के खिलाफ अपराधों के 4.2 लाख से अधिक मामले देखे गए. इनमें पिछले वर्ष की तुलना में 15% की वृद्धि है.

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