भारत में कैसे आई EVM? कैसे होती है वोटों की गिनती? नतीजों से पहले जानें अहम सवालों के जवाब
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उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा के विधानसभा चुनाव के वोटों की गिनती 10 मार्च को होगी. वोटों की गिनती सुबह 8 बजे से शुरू होगी. पहले पोस्टल बैलेट की गिनती होगी और फिर EVM के वोटों की गिनती की जाएगी.
उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा में वोटिंग पूरी हो चुकी है. अब 10 मार्च को वोटों की गिनती की जाएगी. लेकिन उससे पहले कुछ बातें जान लेना भी जरूरी है. जैसे भारत के चुनावों में कब से EVM का इस्तेमाल हो रहा है? स्ट्रॉन्ग रूम क्या होता है? वोटों की गिनती कैसे होती है? ऐसे ही सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़ें ये रिपोर्ट...
भारत में कैसे आई EVM?
- भारत में पहली बार चुनाव आयोग ने 1977 में सरकारी कंपनी इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (ECIL) को EVM बनाने का टास्क दिया. 1979 में ECIL ने EVM का प्रोटोटाइप पेश किया, जिसे 6 अगस्त 1980 को चुनाव आयोग ने राजनीतिक पार्टियों को दिखाया.
- मई 1982 में पहली बार केरल में विधानसभा चुनाव EVM से कराए गए. उस समय EVM से चुनाव कराने का कानून नहीं था. 1989 में रिप्रेंजेंटेटिव्स ऑफ पीपुल्स एक्ट, 1951 में संशोधन किया गया और EVM से चुनाव कराने की बात जोड़ी गई.
- हालांकि, कानून बनने के बाद भी कई सालों तक EVM का इस्तेमाल नहीं हो सका. 1998 में मध्य प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली की 25 विधानसभा सीटों पर EVM से चुनाव कराए गए. 1999 में 45 लोकसभा सीटों पर भी EVM से वोट डाले गए. फरवरी 2000 में हरियाणा के चुनावों में भी 45 सीटों पर EVM का इस्तेमाल हुआ.
- मई 2001 में पहली बार तमिलनाडु, केरल, पुडुचेरी और पश्चिम बंगाल की सभी विधानसभा सीटों पर EVM से वोट डाले गए. 2004 के लोकसभा चुनाव में सभी 543 सीटों पर EVM से वोट पड़े. तब से ही हर चुनाव में सभी सीटों पर EVM से वोट डाले जा रहे हैं.
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