
बीमारी या लापरवाही... 20 दिन में 14 मौत, दिल्ली का शेल्टर होम कैसे बन गया 'यातना केंद्र'?
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आशा किरण में मौत के मामले में दिल्ली की मंत्री आतिशी ने मजिस्ट्रेट जांच के आदेश दिए हैं. आजतक के हाथ जो दस्तावेज लगे हैं, उनमें इसबात का साफ-साफ जिक्र है कि कैसे महीने दर महीने लोगों की मौत हुई. सबसे चौंकाने वाली बात ये कि जुलाई महीने में ही 20 दिन के अंदर 14 की मौत हुई है.
देश की राजधानी में मानसिक रूप से कमजोर लोगों के लिए दिल्ली सरकार की तरफ से चलाए जाने वाला शेल्टर होम ऐसा यातना केंद्र बन गया कि 20 दिन में 14 बच्चों की मृत्यु हो गई. वहीं इस साल में कुल मौतों की बात करें तो ये संख्या 27 है. चौंकाने वाली बात ये है कि अभी तक इसका कोई जायजा नहीं लिया गया है. इस शेल्टर होम की अंदर की स्थिति बेहद खराब है. इतना ही नहीं, बच्चों को सिर्फ आधा ही खाना दिया जाता है. आलम ये है कि मानसिक रूप से कमजोर बच्चों के लिए बनाया गया आशा किरण होम अब उनके लिए डेथ चैंबर बन रहा है.
उपराज्यपाल वी.के सक्सेना ने इन मौतों को सबसे वंचित लोगों के खिलाफ़ अपराध करार दिया. उधर, विपक्षी दलों भाजपा और कांग्रेस ने सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी की सरकार पर लापरवाही का आरोप लगाया और आश्रय गृह के बाहर विरोध प्रदर्शन भी किया. आतिशी ने मौतों की मजिस्ट्रेट जांच की घोषणा की, जिसके बाद उपराज्यपाल सक्सेना ने मुख्य सचिव नरेश कुमार को आशा किरण में हुई मौतों सहित शहर द्वारा संचालित सभी आश्रय गृहों की स्थिति की व्यापक जांच करने का निर्देश दिया और एक सप्ताह के भीतर रिपोर्ट मांगी.
बच्चों को नहीं दिया जा रहा था पूरा खाना
यहां काम करने वाली महिला का कहना है कि जो सुविधा 4 साल पहले यहां बच्चों को दी जाती थी, वो अब नहीं मिलती. पहले बच्चों को दूध, अंडा सब मिलता था, लेकिन अब सब बंद कर दिया गया है और सिर्फ दाल रोटी मिलती है. इतना ही नहीं, करीब दो दर्जन बच्चों को टीबी की बीमारी बताई गई है. इसके पीछे का कारण बच्चों को सही डाइट न मिलना और अधिक संख्या में लोगों को इसमें भर देना है. SDM ऑफिस के सूत्रों के मुताबिक शेल्टर होम की क्षमता लगभग 500 है, लेकिन अंदर लगभग 950 लोग हैं.
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ऐसे में सवाल उठता है कि जिस दिल्ली को वर्ल्ड क्लास सिटी के रूप में जाना और पहचाना जाता है, वहां कहीं ना कहीं पूरा इंफ्रास्ट्रक्चर चरमराता नजर आ रहा है. जो जानकारी मिल रही है, उसमें पता चलता है कि बच्चों को ठीक से खाना नहीं दिया जा रहा है. बीमार हो जाते हैं तो इलाज नहीं दिया जाता. ऐसे में 20 दिनों में 14 मौत हो जाना सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाता है.

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