बयान की रिकॉर्डिंग गायब, फोरेंसिक सबूतों की कमी और जांच में लापरवाही... जानें, निठारी कांड के आरोपियों के बरी होने की असली वजह
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इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कायदे से सिर्फ इन दो लाइनों में ही निठारी कांड की जांच करने वाली जांच एजेंसी CBI को आईना दिखा दिया. इलाहाबाद हाई कोर्ट की ये वही दो सदस्यीय बेंच थी, जिसने सोमवार को सुरेंद्र कोली और मोनिंदर सिंह पंधेर की फांसी की सजा को रद्द करते हुए दोनों को बरी करने का हुक्म सुनाया था.
Nithari Case: निठारी कांड पर फैसले देते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस सैयद आफताब हुसैन रिज़वी और जस्टिस अश्वनी कुमार मिश्रा ने कहा, "इस पूरे केस की जांच को कचरा बना दिया. सबूत इकट्ठा करने के बुनियादी नियमों तक की धज्जियां उड़ा दी. इस पूरे केस की जांच को देख कर ऐसा लगता है, जैसे एक गरीब नौकर को राक्षस बना देने की कोशिश हुई है."
कोली और पंधेर को बरी किए जाने का फरमान
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कायदे से सिर्फ इन दो लाइनों में ही निठारी कांड की जांच करने वाली जांच एजेंसी सीबीआई को पूरा आईना दिखा दिया. इलाहाबाद हाई कोर्ट की ये वही दो सदस्यीय बेंच थी, जिसने सोमवार को सुरेंद्र कोली को निचली अदालत से मिली 12 फांसी और मोनिंदर सिंह पंधेर की 2 फांसी की सजा को रद्द करते हुए दोनों को बरी करने का हुक्म सुनाया.
रिहाई की सिलसिलेवार कहानी
अब सवाल ये है कि एक अदालत कोली को 12 केसों में और मोनिंदर सिंह पंधेर को 2 केसों में सजा-ए-मौत देती है और ऊपरी अदालत दोनों को बरी कर देती है. ऐसा क्यों? तो आइए आपको बताते हैं कि आखिर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कोली और पंधेर को सभी इल्जामों से बरी क्यों कर दिया? 'आज तक' के पास इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस फैसले की पूरी कॉपी है, जिसमें सिलसिलेवार दोनों की रिहाई की वजह बताई गई है.
CRPC की धारा 164 के तहत बयान
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