पुलिस आरोपी को इसलिए नहीं मार सकती क्योंकि वह खूंखार अपराधी है: 1991 फ़र्ज़ी एनकाउंटर पर कोर्ट
The Wire
यह मामला 12-13 जुलाई, 1991 की दरम्यानी रात को उत्तर प्रदेश के पीलीभीत शहर में 10 सिखों की हत्या से संबंधित है. कुछ सिख तीर्थयात्री पीलीभीत से एक बस में तीर्थयात्रा के लिए जा रहे थे. आरोपी पुलिसकर्मी इस बस से 10 सिख युवकों को पकड़कर अपने साथ ले गए थे और तीन अलग-अलग एनकाउंटर में उन्हें मार डाला था.
इस फर्जी मुठभेड़ में 10 सिखों को आतंकवादी बताकर उनकी हत्या कर दी गई थी.
हाईकोर्ट ने निचली अदालत द्वारा पुलिसकर्मियों को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 के तहत सुनाई गई सजा को रद्द करते हुए कहा कि मामला धारा 303 के अपवाद 3 के तहत आता है, जो यह प्रावधान करता है कि यदि अपराधी लोक सेवक होने या लोक सेवक की सहायता करने के कारण किसी ऐसे कार्य द्वारा मृत्यु का कारण बनता है, जिसे वह ‘वैध’ मानता है तो यह हत्या नहीं, बल्कि गैर इरादतन हत्या है.
हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने निर्देश दिया कि दोषी अपनी जेल की सजा काटेंगे और प्रत्येक पर 10-10 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, 43 पुलिसकर्मियों/अपीलकर्ताओं की सजा को आईपीसी की धारा 302 से धारा 304 भाग एक में परिवर्तित करते हुए जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस सरोज यादव की पीठ ने अपने 179 पन्नों के आदेश में टिप्पणी की, ‘यह पुलिस अधिकारियों का कर्तव्य नहीं है कि वे अभियुक्त को केवल इसलिए मार दें, क्योंकि वह एक खूंखार अपराधी है. निस्संदेह पुलिस को आरोपियों को गिरफ्तार करना है और उनके खिलाफ मुकदमा चलाना है.’