नेहरू: वो प्रधानमंत्री, जिन्होंने वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर आधारित भारत का सपना देखा
The Wire
जन्मदिन विशेष: नेहरू विज्ञान और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में स्थापित अनेक संस्थाओं को ‘आधुनिक भारत के मंदिर’ कहा करते थे. वे मूलत: धार्मिक न होने के बावजूद अक्सर धार्मिक परिभाषाओं का उपयोग कर आधुनिकता का पथ प्रशस्त करते थे, इसीलिए नेहरू ने ‘मंदिर’ इन्हीं को बनाया था.
‘विदेशी वर्चस्व से दबे हुए अन्य देशों की तरह भारत में भी राष्ट्रवाद मूलभूत और केंद्रीय विचारधारा बन चुका है. इसे स्वाभाविक माना जा चुका है. हालांकि आर्थिक मामलों में अनेक परिवर्तन हो रहे हैं और एक नई दुनिया आकार ले रही है. दुनिया भर में समाजवादी विचारों का प्रभाव बढ़ रहा है. बुद्धिजीवियों में यह धारणा बलवती हो रही है कि भारत और अन्य देशों के लिए ‘वैज्ञानिक समाजवाद’ ही उचित रास्ता है. इसी अवधारणा के अंतर्गत कांग्रेस में समाजवादी गुट का विकास हुआ. राष्ट्रवाद और समाजवाद के व्यावहारिक योग का प्रतिनिधित्व यही समाजवादी गुट करता है.’ ‘इतिहास के पन्नों पर जब हम नज़र दौड़ाते हैं तो हमें दिखाई देता है कि जन सामान्य का जीवन अत्यंत दयनीय, दुख-दर्दभरा रहा है. अनेक सालों से उनके कंधों पर लादा गया अन्याय का जुआ पिछले कुछ दिनों से विज्ञान के कारण धीरे-धीरे हल्का होने लगा है.’
बॉम्बे क्रॉनिकल के 19 नवंबर 1935 के अंक में नेहरू के एक वक्तव्य से यह उद्धरण लिया गया था. नेहरू आगे कहते हैं कि, आज भले ही राष्ट्रवाद बहुत ज़रूरी लगता हो, मगर किसी भी देश की आर्थिक समस्याओं का हल वह नहीं हो सकता! देश के सामने कृषि का सवाल मुंह बाए खड़ा है, जिसको हल करने का कोई उपाय राष्ट्रवाद के पास नहीं है. इसके विपरीत समाजवाद इस तरह के मूलभूत सवालों को हल करने की कोशिश कर रहा है. इसीलिए सहकारिता के तत्वों तथा सामूहिक भागीदारी पर आधारित खेती कैसे की जा सकती है, नेहरू इस विषय पर विचार-विमर्श कर रहे थे.
अपने इस तरह के वक्तव्यों में नेहरू बार-बार विज्ञान की निर्णायक भूमिका की ओर ध्यान आकर्षित करते हैं. 19 जुलाई 1933 को इंदिरा को लिखे एक पत्र में नेहरू ने लिखा था: