
धराली तबाही का रहस्य... क्या गर्म होते हिमालय में बादल फटने के पैटर्न बदल रहे हैं?
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धराली की आपदा ने हमें एक बार फिर चेतावनी दी है कि हिमालय जैसे संवेदनशील इलाकों में जलवायु परिवर्तन और मानवीय गलतियां मिलकर तबाही मचा रही हैं. बादल फटने का पैटर्न बदल रहा है. ऊंचे इलाकों में होने वाली ऐसी घटनाएं अब नीचे बसे गांवों को प्रभावित कर रही हैं. धराली की 54 करोड़ साल पुरानी ढीली मिट्टी और खड़ी ढलानें इसे और जोखिम में डालती हैं.
उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में बसी धराली गांव में मंगलवार, 5 अगस्त 2025 को हुई भयानक मिट्टी और पानी की बाढ़ ने मौसम वैज्ञानिकों को हैरान कर दिया है. समुद्र तल से करीब 2,745 मीटर की ऊंचाई पर बसा यह गांव कुछ ही पलों में मलबे और पानी के सैलाब में डूब गया.
इस आपदा के वीडियो ने सबको झकझोर दिया, जिसमें तेजी से बहता मलबा और पानी गांव को तबाह करता दिख रहा है. शुरुआती सरकारी रिपोर्ट्स में इसे बादल फटने (क्लाउडबर्स्ट) की घटना बताया गया, जिसमें थोड़े समय में भारी बारिश (100 मिमी प्रति घंटे से ज्यादा) होती है.
ऐसी घटनाएं पहाड़ी इलाकों में बाढ़ और भूस्खलन को जन्म देती हैं. लेकिन भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के आंकड़ों ने इस दावे को गलत साबित कर दिया. IMD के मुताबिक, उस समय धराली के आसपास के किसी भी मौसम स्टेशन में बादल फटने की कोई गतिविधि दर्ज नहीं हुई.
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इस विरोधाभास ने वैज्ञानिकों को सोच में डाल दिया है. कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि शायद 3,000 मीटर से ज्यादा ऊंचाई पर बादल फटा हो, जहां मौसम स्टेशन नहीं हैं. ऐसी ऊंचाई पर होने वाली बारिश नीचे की ओर बहकर भूस्खलन या मलबे का सैलाब ला सकती है, जैसा धराली में हुआ.
हिमालय में 3,000 मीटर से ऊपर बादल फटना क्यों है दुर्लभ?

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