दिन में एक बार अन्न ग्रहण करते थे शंकराचार्य स्वरूपानंद, शिष्यों ने बताया 99 साल की उम्र का राज
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स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की बातों को उनके शिष्य याद कर रहे हैं. 99 वर्ष की आयु तक शंकरचार्य स्वरूपानंद सरस्वती जीवित रहे. सनातन धर्म और संस्कृति के ध्वजवाहक शंकराचार्य परंपरा को संभालने वाले स्वरूपानंद का पूजा-पाठ के नियम और व्यक्तिगत जीवन में संयम बेमिसाल था.
शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती का शरीर शांत होने के बाद उनके शिष्यों ने जहां भावपूर्ण तरीके से विदाई दी, वहीं उनके दो उत्तराधिकारियों की भी घोषणा हुई. नरसिंहपुर के परमहंसी गंगा आश्रम में संत परंपरा के अनुसार शंकराचार्य को भू-समाधि दी गई. उनकी इच्छा अनुरूप स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ज्योतिषपीठ (ज्योतिरपीठ, बद्रीनाथ) के शंकराचार्य घोषित किए गए, तो वहीं दूसरे शिष्य सदानंद सरस्वती शारदा पीठ (द्वारिका) के शंकराचार्य घोषित हुए.
इस बीच स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की बातों को उनके शिष्य याद कर रहे हैं. 99 वर्ष की आयु तक शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती जीवित रहे. सनातन धर्म और संस्कृति के ध्वजवाहक शंकराचार्य परंपरा को संभालने वाले स्वरूपानंद का पूजा-पाठ के नियम और व्यक्तिगत जीवन में संयम बेमिसाल था.
शंकरचार्य स्वरूपानंद सरस्वती को मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के गोटेगांव तहसील के परमहंसी गंगा आश्रम में समाधि दी गई. 99 वर्ष की आयु में स्वरूपानंद सरस्वती ने शरीर छोड़ा. हृदयगति रुकने से उनका निधन हुआ. 99 साल की आयु तक जीवित रहने वाले स्वरूपानंद सरस्वती खान-पान और आचार-व्यवहार में शंकराचार्य की परंपरा का पालन करते रहे.
सिर्फ 3-4 घंटे की नींद, ब्रह्म मुहूर्त में 2 घंटे जप
उनके शिष्य मानते हैं कि आज भी उनका जीवन अनुकरणीय है. स्वरूपानंद सरस्वती की दिनचर्या की सबसे खास बात ये थी कि उनके निद्रा का समय बहुत कम था. स्वरूपानंद सरस्वती सिर्फ तीन-चार घंटे की नींद लेते थे. लम्बे समय तक रात्रि 11 बजे से 01 बजे तक पूजा करते रहे. बाद में थोड़ा स्वास्थ्य खराब होने की वजह से उनके शिष्यों ने इसका दायित्व लिया. स्वरूपानंद सरस्वती 4 बजे सोकर उठते. ब्रह्म मुहूर्त में 2 घंटे जप और उसके बाद नित्य पाठ करते थे.
ये ऐसा नियम था जो शंकराचार्य बनने के बाद हमेशा बना रहा. उसके बाद शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती को उनके शिष्य अलग-अलग प्रसंग पढ़कर सुनाते थे. शंकराचार्य परंपरा के अनुसार, वो संस्कृत के ज्ञाता थे और उन्हें संस्कृत में प्रकरण सुनाए जाते थे. देवों के प्रसंग के अलावा उनको भगवती प्रसंग विशेष प्रिय था. इसके बाद स्वरूपानंद सरस्वती अपने शिष्यों और अन्य लोगों से मिलते थे.