तमाम योजनाओं और करोड़ों रुपये ख़र्च होने के बावजूद गंगा अगर साफ़ नहीं, तो ज़िम्मेदारी किसकी है
The Wire
उत्तर प्रदेश के वाराणसी के घाटों पर अत्यधिक मात्रा में शैवाल पाए जाने के बाद से एक बार फिर से बहस तेज़ हो गई है कि आखिर हज़ारों करोड़ रुपये ख़र्च करने के बाद भी गंगा स्वच्छ क्यों नहीं हो पा रही है. सवाल उठता है कि क्या भारत सरकार द्वारा गंगा पुर्नरुद्धार के नाम पर बनाई गई परियोजनाएं काग़ज़ी दावे बनकर रह गई हैं.
कोरोना महामारी के इस दौर में वाराणसी शहर के ज्यादातर घाटों पर अत्यधिक मात्रा में पाए गए हरे शैवाल ने भारत सरकार के गंगा स्वच्छता के नारे एवं परियोजना की पोल खोल दी है और तमाम सरकारी दावे धरे के धरे रह गए हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि कहीं यह गंगा के विलुप्त होने का संकेत तो नहीं है? ऐसे में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि भारत सरकार के द्वारा गंगा पुर्नरुद्धार के नाम पर बनाई गईं कई परियोजनाएं घोटाला तो बनकर नहीं रह गई? गौरतलब है कि गंगा नदी को स्वच्छ बनाने के उद्देश्य से यानी कि इसके प्राकृतिक बहाव एवं उनकी निर्मलता को पुनः कायम करने के लिए भारत सरकार के द्वारा अब तक कई परियोजनाएं चलाई जा चुकी हैं और उन परियोजनाओं पर वर्ष 2015 तक भारत सरकार की संस्थाओं के जरिये लगभग चार हजार करोड़ रुपये की राशि भी खर्च की जा चुकी है. लेकिन उसका कोई ठोस नतीजा सामने नहीं दिख रहा है. गंगा रिवर बेसिन मैनेजमेंट प्लान (2015) की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 1985-2010 के दौरान गंगा में फीकल कॉलिफोर्म, निर्धारित मानक से अधिक पाया गया था.More Related News