जंग से बेहाल हर देश में पहुंचकर क्यों मारकाट झेलने को तैयार रहती है अमेरिकन आर्मी, इसमें कोई सीक्रेट फायदा छिपा है?
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सीरिया में मौजूद अमेरिकी सेना पर आतंकी हमले बढ़ रहे हैं. अमेरिका के रक्षा विभाग की मानें तो ईरान-सपोर्टर ग्रुप्स ने साल 2021 से लेकर अब तक उनके सैनिकों पर 70 से ज्यादा बार हमला किया. सीरिया में ISIS को रोकने के लिए 7 साल पहले अमेरिका ने अपनी सेना भेजी. सीरिया ही नहीं, दुनिया के हर आतंक-प्रभावित देश में अमेरिकी सेना के छोटे-बड़े टुकड़े हैं.
सीरिया, ईरान और अमेरिका का ट्राईएंगल समझने के 12 साल पीछे लौटते हैं, जब सीरिया में अरब स्प्रिंग आंदोलन चला था. सीरियाई तानाशह बशर अल-असद के खिलाफ आई जनता उन्हें सत्ता से हटाना चाहती थी. विद्रोह को दबाने के लिए सरकार क्रूरता पर उतर आई. इसमें ईरान ने भी तानाशाह का साथ दिया. इसपर अमेरिका सीरियाई जनता के साथ आ गया. इसकी वजह केवल तानाशाही खत्म करना नहीं, बल्कि ईरान से दुश्मनी भी थी. रूस भी ईरानी तानाशाह की मदद करने लगा. इसने आग में घी का काम किया. तब से सीरिया में अमेरिकी सैनिक हैं.
सीरिया में यूएस आर्मी अब किसी भी समय सीरिया में अमेरिका के 900 सैनिक और काफी सारे दूसरे लोग आम लोगों की तरह रह रहे हैं. कुल मिलाकर, सीरिया में तख्तापलट की लड़ाई अब ईरान बनाम अमेरिका जंग बनकर रह चुकी है. गृहयुद्ध छिड़ा हुआ है, वो अलग. हर साल बहुत से सीरियाई लोग शरण लेने के लिए भाग रहे हैं. कुल मिलाकर अमेरिकी सेना के जाने से क्या फर्क पड़ा, ये ग्लोबल तरीके से साफ नहीं.
अफगानिस्तान में बिताए 2 दशक अफगानिस्तान में अमेरिका लगभग 20 सालों तक टिका रहा. उसने साल 2001 में तालिबान के खात्मे के लिए अफगानिस्तान में अपनी सेना भेजी थी. ये 11 सितंबर 2001 के हमले के बाद की घटना है. अमेरिका पूरी तरह से अलकायदा के पीछे लगा हुआ था. वहां आर्मी बेस बनाने और आतंकियों को ठिकाने के लिए पानी की तरह पैसे बहाए गए.
कितने पैसे हुए थे खर्च प्राइस ऑफ वॉर प्रोजेक्ट के मुताबिक अमेरिका ने इस युद्ध पर 2260 अरब डॉलर खर्च किए हैं. सिर्फ युद्ध लड़ने में ही 815 अरब डॉलर खर्च हो गए. अमेरिका ने रिटायर्ड सैनिकों के इलाज और देखभाल पर 296 अरब डॉलर खर्च किए हैं. युद्ध के बाद अफगानिस्तान के राष्ट्र निर्माण की अलग-अलग परियोजनाओं में 143 अरब डॉलर खर्च हो गए.
इस बात के साथ हुई सेना भेजने की शुरुआत इक्का-दुक्का नहीं, 70 से ज्यादा देशों में अमेरिका के 8 सौ मिलिट्री बेस हैं. ये दुनिया में सबसे ज्यादा हैं. इस बारे में यूएस मिलिट्री एकेडमी एट वेस्टपॉइंट, न्यूयॉर्क से कई इंटरनेशनल मीडिया ने पड़ताल करनी चाही.इसकी एक नहीं, कई वजहें मिलीं. सबसे बड़ी और पहली वजह अमेरिका ये देता है कि वो हर उस देश की मदद करता है, जो लोकतांत्रिक सरकार चाहते हैं. इस वजह के साथ वो आतंक के मारे सारे देशों में अपने सैनिक भेजने लगा.
पहला मकसद रूस को फैलने से रोकना था इसकी शुरुआत दूसरे विश्व युद्ध के बाद नाटो की स्थापना से हुई थी. असल में युद्ध खत्म होने के बाद भी सोवियत संघ यूरोप से अपनी सेना हटाने को राजी नहीं था. डेमोक्रेटिक देशों को डर लगने लगा कि कहीं उनके लोग भी सोवियत की तरह कम्युनिस्ट न होने लगें. अमेरिका का रूस से तनाव था ही. तो अप्रैल 1949 में उसने नाटो की स्थापना की, जिसमें अमेरिका और ब्रिटेन समेत कई यूरोपियन देश थे. तब का मकसद साफ था, रूस को अपने पैर पसारने से रोकना. इसी के साथ यूएस आर्मी देशों के भीतर पहुंचने लगे.
अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी पर जर्मन विदेश मंत्रालय की ओर से की गई टिप्पणी पर भारत ने कड़ा एतराज जताया था. भारत ने कहा था कि हम ऐसी टिप्पणियों को हमारी न्यायिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप और न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कमजोर करने के रूप में देखते हैं. जिसके बाद जर्मनी ने अपने बयान से यू-टर्न ले लिया है.
इजरायल-हमास जंग में सीधा दखल देते हुए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) ने गाजा में लड़ाई रोकने का प्रस्ताव पास किया. ये यूनाइटेड नेशन्स की सबसे मजबूत शाखा है. ऐसे में जाहिर है कि उसका कहना भी खासा मायने रखेगा. लेकिन क्या हो अगर कोई देश उसकी बात को नजरअंदाज कर दे? कब और क्या-क्या एक्शन ले सकती है परिषद?
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रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा कि पिछले हफ्ते मॉस्को के बाहरी इलाके में मौजूद क्रोकस सिटी हॉल में हुआ घातक हमला इस्लामी आतंकवादियों द्वारा किया गया है. हालांकि, पुतिन ने मामले में यूक्रेन को क्लीन चिट नहीं दी है. पुतिन ने कहा कि ये यूक्रेन के लिए भी फायदेमंद था और हो सकता है कि कीव ने इसमें भूमिका निभाई हो. उन्होंने ये टिप्पणी आतंकी हमले के जवाब में रूस द्वारा हुई एक मीटिंग के दौरान की. इससे पहले फ्रांस ने अमेरिका के हां में हां मिलाते हुए कहा कि, खुफिया जानकारी से संकेत मिलता है कि हॉल में हुए हमले के लिए इस्लामिक स्टेट जिम्मेदार है. आपको बता दें कि इस हॉल में 4 आतंकियों ने घुसपैठ की और करीब 140 से ज्यादा लोगों ने अपनी जान गवाई.
ईरान के जुर्माने से बचने के लिए पाकिस्तान ने उठाया ये कदम तो अमेरिका ने दी प्रतिबंध लगाने की चेतावनी
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