क्यों देश छोड़कर अमेरिका और यूरोप की शरण ले रहे चीन के नागरिक? जर्मनी में अवैध परमिट लेकर रहते सैकड़ों चीनी पकड़ाए
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जर्मनी में बुधवार को बड़ी छापेमारी हुई. इस दौरान सैकड़ों चीनी नागरिकों को पकड़ा गया, जो अवैध ढंग से जर्मनी का रेजिडेंट परमिट पा चुके थे. चीन से माइग्रेशन की खबर कम ही सुनाई देती है, लेकिन ये बहुत जमकर हो रहा है. देश में रोकटोक और बहुत ज्यादा राजनैतिक सख्ती के चलते चीनी नागरिक दूसरे देशों की शरण ले रहे हैं.
साल 2012 से शरणार्थी चीनी नागरिकों की संख्या लगातार बढ़ी. ये अलग-अलग देशों में जा रहे हैं, जिसमें अमेरिका टॉप पर है. द कन्वर्सेशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले दशकभर में साढ़े 8 लाख से ज्यादा चीनियों ने कई देशों में शरण पाने के लिए आवेदन किया. हालात ये हैं कि रिफ्यूजी स्टेटस न पाने पर वे खतरनाक रास्तों से घुसपैठ तक कर रहे हैं. लेकिन इकनॉमिक तौर पर बेहद मजबूत कहलाते देश के भीतर ऐसा क्या हुआ जो लोग बाहर जा रहे हैं.
पहले जर्मनी का मामला समझते हैं बुधवार को वहां के 8 राज्यों में छापेमारी शुरू हुई. फेडरल पुलिस के इस रेड में इंटेलिजेंस के लोग भी शामिल थे. सौ से ज्यादा ऐसी इमारतों पर छापा मारा गया, जहां बिजनेस चल रहा है. इस दौरान बड़ी संख्या में चीनी नागरिक मिले जो हजारों यूरो खर्च करके जर्मनी का रेजिडेंस परमिट ले चुके थे. मानव तस्करी का एक पूरा गैंग काम करता है जो अलग-अलग देशों के जरूरतमंद लोगों को पैसों के बदले जर्मनी ला रहा है. फिलहाल उनपर कार्रवाई जारी है, लेकिन चीन का मामला इसके बाद काफी हाइलाइट हो गया.
दशकों तक अमेरिका ने लगाई थी पाबंदी
साल 1882 से लेकर 1943 तक अमेरिकी सरकार ने चीनी मजदूरों के आनेजाने पर बैन लगा दिया. ऐसा कई वजहों से हुआ. इसमें इकनॉमिक कंपीटिशन कम था, लेकिन ये डर ज्यादा था कि चीनी नागरिक अमेरिका में रहनेवालों के रिसोर्सेज पर कब्जा कर लेंगे. हर चीज का जुगाड़ करने में आगे चीनियों ने इसकी तोड़ भी निकाल ली. वे मैक्सिकन नाम रखने लगे, कामचलाऊ मैक्सिकन बोलने लगे, और मैक्सिको के रूट से अमेरिका में घुसपैठ करने लगे. तब अमेरिका और मैक्सिको में आवाजाही आसान थी.
1943 में चीनियों पर से बैन का नियम ढीला पड़ा और एंट्री ज्यादा तेजी से होने लगी. अब ये और भी बढ़ चुकी है.
एक तरफ जापान है, जहां के लोग हफ्ते में औसतन 60 घंटे काम के लिए जाने जाते रहे, वहीं एक सुस्ताता हुआ देश भी है- किरिबाती. प्रशांत महासागर के इस द्वीप देश के लोग दिन के 6 घंटों से भी कम काम करते हैं. इसे दुनिया में 'शॉर्टेस्ट वर्क-वीक' वाला देश माना जाता है. किरिबाती के लोग ज्यादा काम न करें, ये खुद वहां की सरकार तय करती है.
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