
केजरीवाल कांग्रेस की राह के बड़े कांटा थे, राहुल गांधी ने निकाल डाला
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दिल्ली चुनाव में लगातार तीसरी बार भले ही कांग्रेस का खाता न खुला हो, लेकिन विपक्षी दलों के नेताओं को राहुल गांधी ने अपना संदेश तो दे ही दिया है - और आम आदमी पार्टी की हार पक्की करके अपने लिए कई मुसीबतें भी टाल दी है.
कांग्रेस का विरोध करके ही अरविंद केजरीवाल राजनीति में आये. कांग्रेस के समर्थन से ही पहली बार सत्ता हासिल की, लेकिन कांग्रेस के विरोध ने ही अब उनको सत्ता से बाहर भी कर दिया है.
2013 में 8 विधायकों वाली कांग्रेस के समर्थन से अरविंद केजरीवाल पहली बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बने थे, लेकिन उसके बाद से अब तक हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का खाता भी नहीं खुल सका है.
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था, लेकिन विधानसभा चुनाव के बहुत पहले ही गठबंधन की नई संभावना खत्म हो गई थी. गठबंधन न करने की घोषणा भी आम आदमी पार्टी की तरफ से ही हुई थी, और उसके बाद से ही दिल्ली कांग्रेस के नेता भी एक्टिव हो गये थे.
अरविंद केजरीवाल से लोकसभा चुनाव में हाथ मिलाने की वजह से कांग्रेस को काफी नुकसान भी हुआ. गुजरात में अहमद पटेल का परिवार नाराज हुआ, और दिल्ली में अरविंद सिंह लवली खफा होकर फिर से पार्टी छोड़ दिये. पार्टी छोड़ने से पहले वो दिल्ली कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष हुआ करते थे, लेकिन वो दोबारा बीजेपी में चले गये. अहमद पटेल, सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव हुआ करते थे.
2013 में समर्थन देने को छोड़ दें तो बाद में दिल्ली का कोई भी कांग्रेस नेता अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं करना चाहता था. शीला दीक्षित तो ताउम्र अरविंद केजरीवाल के विरोध में डटी रहीं, और संदीप दीक्षित तो नई दिल्ली सीट पर हार के बाद भी खुश होंगे. और कुछ न सही, बेटे ने मां को हराकर राजनीतिक वनवास के लिए मजबूर कर देने वाले अरविंद केजरीवाल को हरा भले न पाया, लेकिन हार पक्की तो कर ही दी.
और राहुल गांधी ने भी संदीप दीक्षित वाला ही काम किया है, कांग्रेस के खाते में कोई विधानसभा सीट तो नहीं आ सकी, लेकिन दिल्ली से पांच साल के लिए अरविंद केजरीवाल की विदाई तो कर ही डाली है.

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