किसी के रॉकी-रानी, किसी का सत्यप्रेम... छोटी होती फिल्मों के लंबे होते नामों की कथा!
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इस हफ्ते 'रॉकी और रानी की प्रेम कहानी' थिएटर्स में रिलीज होगी. ये साल की अकेली फिल्म नहीं है जिसके नाम में 6 शब्द हैं. 4 शब्दों वाले, टंग ट्विस्टर वाले टाइटल तो इस साल कई फिल्मों के रहे. आपने कभी ध्यान दिया कि समय के साथ फिल्मों के टाइटल कैसे लंबे होते जा रहे हैं? और सबसे लंबा हिंदी फिल्म टाइटल क्या है? आइए बताते हैं...
दो शब्दों का एक जुमला है- 'साइज मैटर्स'. यानी साइज का बड़ा महत्त्व है. इस जुमले को कई प्रोडक्ट्स की मार्केटिंग के लिए, बतौर टैगलाइन, खूब घिसा जा चुका है. ये इस्तेमाल कहीं भी हो, असरदार भरपूर रहता है. हालांकि, एक विडंबना ये है कि साइज पर जोर देने वाला ये जुमला खुद दो छोटे-छोटे शब्दों से बना है, और बतौर टैगलाइन शुरू होते ही खत्म हो जाता है! लेकिन बात अगर फिल्मों के नाम रखने की हो, तो क्या टाइटल का साइज मैटर करता है?
इस सवाल को थोड़ा और डिटेल में ले चलते हैं... अगर 1975 में आई रमेश सिप्पी की फिल्म का टाइटल एक शब्द के 'शोले' की बजाय, 5-6 शब्दों का होता तो क्या ये और भी ज्यादा पॉपुलर हो जाती? या अगर अक्षय कुमार की फ्लॉप फिल्म 'वन्स अपॉन अ टाइम इन मुंबई दोबारा' का टाइटल थोड़ा छोटा होता तो क्या ये ब्लॉकबस्टर हो जाती? इन दोनों सवालों का जवाब तो आपको हम क्या, शायद कोई न दे पाए. लेकिन सुकून की बात ये है कि आपके दिमाग में नेचुरली उठने वाले इस सवाल का जवाब हमारे पास जरूर है, कि ये दोनों बेतुके सवाल आखिर आए कहां से?
इन सवालों की जड़ है करण जौहर की फिल्म, जो आने वाले शुक्रवार को थिएटर्स में रिलीज होने जा रही है. रणवीर सिंह और आलिया भट्ट स्टारर इस फिल्म का टाइटल है- रॉकी और रानी की प्रेम कहानी. फिल्म चाहे कैसी भी निकले लेकिन 6 शब्द का ये टाइटल, इस साल का सबसे लंबा फिल्म टाइटल कहलाने का हकदार है. जबकि इस साल पहले ही कई जीभ लड़खड़ा देने वाले टाइटल आ चुके हैं.
करण जौहर निकले खुद से ही आगे 'रॉकी और रानी की प्रेम कहानी' का टाइटल 6 शब्दों का है. इसमें अनोखी बात ये है कि करण जौहर ने ये टाइटल रखने में खुद अपनी वर्ड लिमिट को तोड़ा है. उनकी फिल्मों के नाम में अभी तक 4 शब्द ही रहते थे. उनकी पहली फिल्म 'कुछ कुछ होता है' (1998) का टाइटल हो या फिर 2016 में रिलीज हुई उनकी लास्ट फिल्म 'ऐ दिल है मुश्किल'. इतन ही नहीं, एंथोलॉजी फिल्म 'बॉम्बे टॉकीज' में भी उनके सेगमेंट का टाइटल 4 शब्दों का था- अजीब दास्तां है ये.
बढ़ते सालों के साथ, टाइटल की बढ़ती लंबाई 70s के दशक में पॉपुलर हिंदी फिल्मों के टाइटल, एक शब्द के ज्यादा मिलते हैं. जैसे- दीवार, शोले, कर्ज, पाकीजा, त्रिशूल या खूबसूरत. दो शब्दों वाले नाम के साथ 'अमर प्रेम' या 'चुपके चुपके' जैसी फिल्में भी आती रहती थीं. लेकिन तीन शब्द वाले फिल्म टाइटल उस दौर के स्टैण्डर्ड के हिसाब से थोड़े लंबे हो जाते थे और गिनी चुनी फिल्मों में ही इस्तेमाल हुए. ऐसे नाम वाली कई फिल्में बड़ी हिट थीं. जैसे- मुकद्दर का सिकंदर, अमर अकबर एंथनी, यादों की बारात.
चार शब्दों की लिमिट पार करने वाला सबसे पॉपुलर टाइटल उस समय देव आनंद और जीनत अमान की फिल्म का था- 'हरे रामा हरे कृष्णा'. 80 के दशक में 4 शब्दों वाले टाइटल की कुछ पॉपुलर फिल्में मिल जाती हैं. जैसे- जाने भी दो यारों और एक दूजे के लिए. या फिर आमिर खान की डेब्यू फिल्म 'कयामत से कयामत तक' (1988). इसी 80 के दशक में, जब ज्यादातर फिल्मों के नाम 4 शब्दों तक जाकर खत्म हो जाते थे, तभी सबसे लंबे टाइटल वाली कुछ हिंदी फिल्में भी आईं.