
कानूनी लूपहोल जिनका फायदा उठाकर सेंगर जैसे नेता रेप केस में भी जमानत पा जा रहे? क्यों बदलाव जरूरी
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दिल्ली हाई कोर्ट ने उन्नाव रेप मामले में दोषी पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की सजा निलंबित कर दी. कोर्ट ने कहा कि सेंगर तकनीकी रूप से ‘लोक सेवक’ नहीं थे, इसलिए उन पर लोक सेवकों के लिए तय कड़ी सजा लागू नहीं होगी. इस फैसले ने कानून की परिभाषा और जवाबदेही पर बहस छेड़ दी है.
दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल ही में उन्नाव रेप कांड के दोषी और पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की जेल की सजा निलंबित करके उसे बड़ी राहत दी है. कोर्ट ने 1984 के एआर अंतुले मामले के ऐतिहासिक फैसले का हवाला देते हुए सेंगर को तकनीकी रूप से 'लोक सेवक' मानने से इनकार कर दिया है.
भारतीय दंड संहिता और पॉक्सो कानून की मौजूदा परिभाषा के मुताबिक, सांसद या विधायक सरकारी कर्मचारी की कैटेगरी में नहीं गिने जाते हैं. इस कानूनी स्थिति की वजह से सेंगर को उस कड़ी सजा के प्रावधानों से छूट मिल गई है, जो केवल लोक सेवकों पर लागू होते हैं.
यह फैसला सत्ता के उच्च पदों पर बैठे लोगों की जवाबदेही तय करने वाले विशेष कानूनों के मूल उद्देश्य पर सवाल खड़े कर रहा है.
क्यों जरूरी है 'लोक सेवक' की परिभाषा?
भारतीय आपराधिक कानूनों में 'लोक सेवक' यानी पब्लिक सर्वेंट की भूमिका को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है. रेप या अन्य गंभीर अपराधों से जुड़े विशेष कानूनों में लोक सेवकों की जवाबदेही को सामान्य नागरिक की तुलना में ऊंचे पायदान पर रखा गया है. अक्सर लोक सेवक द्वारा किए गए आपराधिक कृत्यों के लिए कानून में ज्यादा कठोर दंड का प्रावधान होता है. इसका मकसद यह सुनिश्चित करना है कि सत्ता या अधिकार के पद पर बैठा कोई भी शख्स अपने प्रभाव का गलत इस्तेमाल न कर सके.
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