
Chhath 2022: 30 अक्टूबर को दिया जाएगा डूबते सूर्य को अर्घ्य, जानें इसके लाभ और शुभ मुहूर्त
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sandhya arghya timing: छठ व्रत की शुरुआत नहाए-खाय के साथ होती है. इसके बाद खरना, अस्ताचलगामी अर्घ्य और उषा अर्घ्य की परंपरा निभाई जाती है. 30 अक्टूबर को अस्ताचलगामी अर्घ्य यानी डूबते सूरज को अर्घ्य देने की परंपरा निभाई जाएगी.
छठ पूजा का व्रत सबसे कठिन व्रतों में से एक होता है. इसमें पूरे चार दिनों तक व्रत के नियमों का पालन करना पड़ता है और व्रती महिलाएं पूरे 36 घंटे का निर्जला व्रत रखती हैं. छठ व्रत की शुरुआत नहाए-खाय के साथ होती है. इसके बाद खरना, अस्ताचलगामी अर्घ्य और उषा अर्घ्य की परंपरा निभाई जाती है. इस बार 30 अक्टूबर को अस्ताचलगामी अर्घ्य यानी डूबते सूरज को अर्घ्य दिया जाएगा. आइए आपको इसका महत्व और मुहूर्त बताते हैं.
डूबते सूर्य को क्यों देते हैं अर्घ्य? छठ के महापर्व में कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि को व्रती महिलाएं उपवास रखती हैं और शाम को किसी नदी या तालाब में जाकर डूबते सूर्य को अर्घ्य देती हैं. ये अर्घ्य एक बांस के सूप में फल, ठेकुआ प्रसाद, ईख, नारियल आदि रखकर दिया जाता है. इसके बाद कार्तिक शुक्ल सप्तमी की सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं. इस दिन छठ व्रत संपन्न हो जाता है और व्रती महिलाएं व्रत का पारण करती है।
डूबते सूर्य को अर्घ्य देने के लाभ छठ का पहला अर्घ्य षष्ठी तिथि को दिया जाता है. यह अर्घ्य अस्ताचलगामी यानी डूबते सूर्य को दिया जाता है. इस दिन जल में दूध डालकर सूर्य की अंतिम किरण को अर्घ्य देने का विधान है. ऐसा माना जाता है कि सूर्य की एक पत्नी का नाम प्रत्यूषा है और ये अर्घ्य उन्हीं को समर्पित है. संध्या समय अर्घ्य देने से कुछ विशेष तरह के लाभ होते हैं. इससे नेत्र ज्योति बढ़ती है और लम्बी आयु का वरदान मिलता है. साथ ही जीवन में आर्थिक संपन्नता भी आती है.
संध्या अर्घ्य का शुभ मुहूर्त छठ पूजा में डूबते सूर्य को अर्घ्य देने का विशेष महत्व बताया गया है. इस साल छठ के महापर्व में संध्या अर्घ्य रविवार, 30 अक्टूबर को शाम 5 बजकर 34 मिनट पर दिया जाएगा. इसके बाद अगले दिन यानी सोमवार, 31 अक्टूबर को उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा. इस दिन सूर्योदय सुबह 6 बजकर 27 मिनट पर होगा.
छठ पर्व का पौराणिक और वैज्ञानिक महत्व कार्तिक मास में भगवान सूर्य की पूजा की परंपरा है. शुक्ल पक्ष में षष्ठी तिथि को इस पूजा का विशेष विधान है. इस पूजा की शुरुआत मुख्य रूप से बिहार और झारखण्ड से हुई, जो अब देश-विदेश तक फैल चुकी है. कार्तिक मास में सूर्य अपनी नीच राशि में होता है, इसलिए सूर्य देव की विशेष उपासना की जाती है, ताकि स्वास्थ्य की समस्याएं परेशान न करें. षष्ठी तिथि का संबंध संतान की आयु से भी होता है. इसलिए सूर्यदेव और षष्ठी की पूजा से संतान प्राप्ति और और उसकी आयु रक्षा दोनों हो जाती हैं.

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