
CCTV, CJI और EC को इम्युनिटी... राहुल गांधी के वो तीन सवाल, जिनके अमित शाह ने दिए जवाब
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चुनाव सुधार पर लोकसभा में दो दिन तक चली चर्चा का गृह मंत्री अमित शाह ने जवाब दिया. अमित शाह ने राहुल गांधी की ओर से उठाए गए तीन सवाल भी गिनाए और अतीत का रेफरेंस लेकर उन सवालों के जवाब भी दिए.
लोकसभा में वोटर लिस्ट के विशेष गहन पुनरीक्षण यानी एसआईआर पर मॉनसून सत्र से ही चली आ रही रार आखिरकार बहस के मुकाम तक पहुंच चुकी है. निचले सदन में दो दिन तक चुनाव सुधार पर गर्मागर्म बहस हुई. सत्तापक्ष और विपक्ष के सदस्यों ने एक-दूसरे पर तल्ख तीर छोड़े, आरोप लगाए. विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने भी चुनाव आयुक्त की नियुक्ति से लेकर सीसीटीवी फुटेज डिलीट करने के नियम तक, सरकार पर तल्ख सवाल दागे.
लोकसभा में दो दिन तक चली गर्मागर्म चर्चा का जवाब देते समय गृह मंत्री अमित शाह ने भी विपक्ष को जमकर घेरा. गृह मंत्री शाह ने कांग्रेस पर करारे वार किए और विपक्ष के नेता राहुल गांधी के तीन सवाल भी दोहराए. अमित शाह ने राहुल गांधी के एक-एक सवाल का जवाब दिया. राहुल गांधी के तीन सवाल और अमित शाह के जवाब...
राहुल गांधी का पहला सवाल- मुख्य न्यायाधीश को चुनाव आयुक्त चयन समिति से बाहर क्यों निकाला गया?
अमित शाह का जवाब- 73 वर्ष तक इस देश में चुनाव आयोग की नियुक्ति का कोई कानून ही नहीं था. नियुक्ति प्रधानमंत्री सीधी करते थे. अब तक जितने चुनाव आयुक्त हुए, सभी इसी प्रकार से हुए. 1950 से 1989 तक चुनाव आयोग एक सदस्यीय था. प्रधानमंत्री फाइल भेजते थे राष्ट्रपति को और राष्ट्रपति नोटिफिकेशन जारी कर देते थे. तो भाई उस वक्त बरोबर चुनाव था? उनके पूरे 55 साल प्रधानमंत्री ने ही चुनाव आयुक्त को नियुक्त किया. तब कोई सवाल नहीं था और नरेंद्र मोदी करते हैं, तो उनपर सवाल उठाते हैं.
उन्होंने आगे कहा कि 1989 से1991, 89 में चुनाव आयुक्त उनकी सुनते नहीं थे, तो उनपर ब्रेक लगाने के लिए पहली बार चुनाव आयोग को बहुसदस्यीय बनाया गया. ये बिहार के चुनाव के कारण ही हुआ, लेकिन वो भी प्रधानमंत्री की फाइल से ही अपॉइंट हुए थे. 21 चुनाव आयुक्त और आठ मुख्य चुनाव आयुक्त, 29 चुनाव आयुक्त और मुख्य चुनाव आयुक्त प्रधानमंत्री की फाइल से ही नियुक्त हुए. कांग्रेस पार्टी ने ही यह परंपरा बनाई थी. कानून भी यह कांग्रेस पार्टी ने ही बनाया था.
अमित शाह ने कहा कि 2023 में अनूप बर्नवाल बनाम भारत सरकार मुकदमा हुआ. उसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चुनाव आयोग की नियुक्ति थोड़ी पारदर्शी होनी चाहिए. यह सुझाव ही था, ऑर्डर नहीं. हमारे सॉलिसीटर जनरल ने वहां कहा कि हमें कानून बनाने में थोड़ी देर लगेगी और हमें इस पर कंसल्टेशन भी करना पड़ेगा, चुनाव आयोग से भी करना पड़ेगा. तो कोर्ट ने कहा ठीक है, अगर आप सहमत हैं, जब तक कानून नहीं बनता, तब तक भारत के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक कमेटी बने और प्रधानमंत्री के साथ विपक्ष के नेता इसके सदस्य हों.

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