
'सुरक्षा 90 के अक्तूबर में भी नहीं थी...', जैसा तसलीमा ने लिखा था 31 साल बाद भी बांग्लादेश में हिंदुओं का वैसा ही हाल
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बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के खिलाफ छात्रों के गुस्से ने उनकी सरकार हिला दी थी. ढाका सहित बांग्लादेश की सड़कों पर ऐसी हिंसा भड़की, जिसकी कीमत हिंदुओं को चुकानी पड़ी. उनके घर-बार, मंदिर, संपत्तियों को आग में झोंक दिया गया था, जिसके बाद बड़ी संख्या में हिंदू बांग्लादेश छोड़कर भारत में शरण लेना चाहते हैं.
यह मुसलमानों का होमलैंड है. यहां अपनी जिंदगी की कोई निश्चयता नहीं है. अपनी मातृभूमि में अगर निश्चयता नहीं है तो फिर पृथ्वी के किस स्थान पर होगी... यह बांग्लादेश की लोकप्रिय लेखिका तस्लीमा नसरीन के विवादित उपन्यास लज्जा का एक प्रसंग है.
लज्जा बांग्लादेश की लेखिका तसलीमा नसरीन का 1993 में प्रकाशित उपन्यास है, जो 1992 में बाबरी मस्जिद डेमोलिशन के बाद बांग्लादेश में हुए दंगों पर आधारित है. इस उपन्यास में हिंदू परिवारों पर मुस्लिम कट्टरपंथियों की हिंसा का जिक्र किया गया है. जिस वजह से हिंदू परिवार दंगों के बीच देश छोड़ने को मजबूर हुआ था.
लेकिन आज से 31 साल पहले के इस उपन्यास में हिंसाग्रस्त बांग्लादेश की तुलना मौजूदा बांग्लादेश से की जा सकती है. जिस तरह से मौजूदा समय में पांच अगस्त के तख्तापलट और शेख हसीना के प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद मुल्क छोड़ देने से देश हिंसा की आग में जल उठा था. ठीक इसी तरह 1992 में भी बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के बाद बांग्लादेश दंगों की आग में जकड़ गया था, जहां अल्पसंख्यक हिंदुओं को चुन-चुनकर निशाना बनाया गया था.
तसलीमा ने अपने उपन्यास लज्जा में बांग्लादेश में सांप्रदायिक उन्माद के नृशंस रूप का जिक्र किया है. धार्मिक कट्टरपन को सामने लाने का प्रयास किया. अब जरा किताब के इस वाक्यांश पर गौर फरमाने की जरूरत है:-
सुरक्षा नब्बे के अक्तूबर में भी नहीं थी. प्रसिद्ध ढाकेश्वरी मंदिर में आग लगा दी गई थी, पुलिस निष्क्रिय होकर सामने खड़ी तमाशा देखती रही. कोई रुकावट नहीं डाली गई. मुख्य मंदिर जलकर राख हो गया. अंदर घुसकर उन लोगों ने देवी-देवताओं के आसन को विध्वस्त कर दिया. शंखारी बाजार के सामने हिंदुओं की पांच दुकानों में लूटपाट और तोड़फोड़ के बाद उन्हें जला दिया गया. शिला वितान, सुर्मा ट्रेडर्स, सैलून और टायर की दुकान, मीता मार्बल, साहा कैबिनेट कुछ भी उपद्रवियों के ताडंव से बच नहीं पाया. 25 हिंदू परिवारों के घरों को 200 से 300 की सांप्रदायिक भीड़ ने लूट लिया. सुत्रापुर में हिंदुओं की दुकानों को लूटकर उनमें मुसलमानों के नाम के पट्टे लटका दिए गए. नवाबपुर के घोष एंड संस की मिठाई की दुकान को लूटकर उसमें नवाबपुर युवा यूनियन क्लब का बैनर लटका दिया गया.
पहली नवंबर क रात दस बजे 200 से 300 लोग जुलूस में आए और पूरे गांव को लूटा. जो ले जा सकते थे, ले गए. जो नहीं ले जा सके, उसे जला दिया. जगह-जगह पर राख के ढेर, जले हुए घर और अधजले पेड़ों की कतारें हैं. धान के भंडार में आग लगा दी गई. करीब 4000 हिंदू घर क्षतिग्रस्त हुए. 75 फीसदी घर जलकर राख हो गए. अनेक स्त्रियों के साथ बलात्कार हुआ. मंदिरों को चुन-चुनकर निशाना बनाया गया.

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