
सर्दी और PM2.5...पॉल्यूशन बिगाड़ रहा दिल्ली-NCR वालों की मेंटल हेल्थ, मेमोरी से मूड तक पड़ा असर
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सर्दियां आते ही दिल्ली-NCR की हवा ज़हरीली होने लगती है और इसका असर सिर्फ फेफड़ों पर नहीं बल्कि दिमाग और मूड पर भी गहराई से पड़ता है. वैज्ञानिक मानते हैं कि बढ़ता पॉल्यूशन लोगों में चिड़चिड़ापन, चिंता, ब्रेन-फॉग और थकान जैसी मानसिक परेशानियां बढ़ा रहा है.
जैसे-जैसे सर्दी गहराती है, हवा में धुआं और धुंध घुलते जाते हैं और इनके साथ हमारे दिमाग में भारीपन, चिड़चिड़ापन और तनाव भी बढ़ता है. विशेषज्ञ बताते हैं कि पॉल्यूशन के महीनों में लोगों का मूड ज्यादा अस्थिर होता है और मानसिक थकान तेजी से बढ़ती है. नए शोध बताते हैं कि ये हमारे दिमाग, मूड और लांग टर्म में मानसिक सेहत पर भी असर डालते हैं. अचानक बदलते मौसम से डिप्रेशन और एंजायटी की समस्या होती हैं. वहीं, लंबे समय के प्रदूषण का रिलेशन डिमेंशिया जैसे न्यूरो-डिजेनरेटिव रोगों से भी जोड़ा गया है.
मूड और कॉग्निशन पर प्रदूषण का असर
नेचर में प्रकाशित एक 2025 की स्टडी रिपोर्ट में कहा गया है कि हाई PM2.5 से थोड़ी देर के एक्सपोजर के कुछ घंटों के भीतर उच्च-स्तरीय सोच में गिरावट पाई गई. आसान शब्दों में कहें तो तीव्र प्रदूषण वाले दिनों में निर्णय लेने और जटिल कामों की क्षमता प्रभावित हो सकती है.
वहीं लंबे समय का एक्सपोजर बच्चों और बुजुर्गों के कॉग्निटिव फंक्शन को कमजोर करता है. कई समीक्षाओं और आबादी-आधारित अध्ययनों ने PM2.5 और अन्य वायु प्रदूषकों को डिप्रेशन, एंग्जायटी और समय के साथ कॉग्निटिव इम्पेयरमेंट से जोड़ा है. ये संबंध बच्चों और बुजुर्गों में विशेष रूप से चिंताजनक दिखता है.
सर गंगाराम अस्पताल दिल्ली के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ राजीव मेहता कहते हैं कि पिछले कुछ सालों में ठंड के साथ प्रदूषण बढ़ने के दौरान डिप्रेशन और एंजायटी के केस बढ़े हैं. जैसे कुछ लोगों में सफाई पसंद करने की प्रवृत्ति होती है लेकिन जब बाहर धुंध और धुआं छाया रहता है और पता होता है कि ये हानिकारक कण हैं तो अंदर घिन और बेचैनी पैदा होती है. सांस लेने में तकलीफ होती है तो घबराहट और बढ़ जाती है.ये सभी फैक्टर मूड को खराब करते हैं. यही नहीं प्रदूषक कण दिमाग तक पहुंचकर नर्व सेल्स को नुकसान भी पहुंचाते हैं.
डिमेंशिया और न्यूरो-डिजेनरेशन का भी रिस्क

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