मोदी सरकार का पार्टियों को विदेशी चंदे की अनुमति देना लोकतंत्र को असली ख़तरा: पूर्व वित्त सचिव
The Wire
पूर्व वित्त सचिव ईएएस सरमा ने कैबिनेट सचिव राजीव गौबा को लिखे एक पत्र में कहा है कि विदेशी चंदे को लेकर मूल समस्या से निपटने के बजाय हर्ष मंदर के एनजीओ अमन बिरादरी का उत्पीड़न न्याय का उपहास करना है.
नई दिल्ली: भारत सरकार के पूर्व वित्त सचिव ईएएस सरमा ने कैबिनेट सचिव राजीव गौबा को लिखा है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा हर्ष मंदर के एनजीओ के खिलाफ केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) जांच की सिफारिश की खबरें ‘न्याय का मजाक’ उड़ाने वाली हैं. ‘सामान्य तौर पर अगर सरकार के पास चुनावी प्रक्रिया की अखंडता को बनाए रखने के प्रति कोई सम्मान होता, तो वह तुरंत एफसीआरए का उल्लंघन करने के लिए भाजपा सहित राजनीतिक दलों के खिलाफ कार्रवाई के लिए आगे बढ़ती, खासकर इस तथ्य के मद्देनजर कि किसी और के मामले में इस तरह का दान प्राप्त करने की तुलना में राजनीतिक दलों को विदेशी चंदा मिलना हमारे लोकतंत्र की शुचिता को नुकसान पहुंचा सकता है. ‘कंपनी दान के लिए राजनीतिक दलों के अतृप्त लोभ को कोई रहस्य न रखते हुए वर्तमान एनडीए सरकार ने चुनावी बॉन्ड की एक अपारदर्शी प्रणाली की शुरुआत की, जिसके माध्यम से कोई भी और हर कोई राजनीतिक दलों को दान दे सकता है. यह अनुच्छेद 19 में मिले नागरिकों के यह जानने के अधिकार कि देश के राजनीतिक दलों को फंडिंग कौन कर रहा है, के उलट भारत के नागरिकों को यह जानने का अवसर ही नहीं देता है. जहां तक मुझे जानकारी है, हर्ष मंदर द्वारा संचालित अमन बिरादरी ट्रस्ट लोगों के बीच बंधुत्व और धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा देने की दिशा में बेहतरीन काम कर रहा है. मैं मेरे पास अमन बिरादरी के खिलाफ गृह मंत्रालय द्वारा बनाए गए मामले का कोई विवरण होने का दावा नहीं करता, लेकिन सरकार को मेंस रय (Mens rea- आपराधिक इरादे के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला लैटिन शब्द) और महज तकनीकी उल्लंघन के बीच स्पष्ट अंतर करना चाहिए. ऐसा लगता है कि गृह मंत्रालय अमन बिरादरी को गलत इरादों के लिए जिम्मेदार ठहरा रहा है, जो प्रथमदृष्टया अस्वीकार्य है.’ ‘मैं व्यथित महसूस कर रहा हूं कि गृह मंत्रालय अमन बिरादरी और हर्ष मंदर के खिलाफ सीबीआई जांच की सिफारिश कर रहा है, जबकि कई राजनीतिक दल एफसीआरए के तहत या अन्यथा कहीं अधिक गंभीर अपराधों से बच रहे हैं!
रिपोर्ट के अनुसार, सरमा ने इन मीडिया रिपोर्ट्स को ‘परेशान करने वाला’ कहा है. उनके पत्र में एनडीटीवी की एक रिपोर्ट का लिंक शामिल है जिसका शीर्षक है ‘केंद्र ने एक्टिविस्ट हर्ष मंदर के एनजीओ के खिलाफ सीबीआई जांच की सिफारिश की’. गृह मंत्रालय के अनाम अधिकारियों के हवाले से कई मीडिया आउटलेट्स द्वारा खबर दी गई है कि ‘विदेशी योगदान (विनियमन) अधिनियम (एफसीआरए) के कथित उल्लंघनों को लेकर मंदर के एनजीओ के खिलाफ सीबीआई जांच की मांग की गई है.’ इसके बजाय वर्तमान एनडीए सरकार ने राजनीतिक दलों के बैंक खातों में विदेशी चंदे के प्रवाह के रास्ते में आने वाले कानूनों को पूर्वव्यापी रूप से बदलने का असाधारण कदम उठाया.’ यह विचित्र है कि एक सामान्य नागरिक को एक बैंक एक खाते के लिए हजार तरह की बोझिल नो-योर-कस्टमर (केवाईसी) प्रक्रियाओं का पालन करना पड़ता है, लेकिन राजनीतिक दलों को बिना किसी जवाबदेही के हजारों करोड़ रुपये पाने के लिए कुछ नहीं करना है! नफरत फैलाने वाले भाषण देने वालों, लोगों की भावनाओं को आहत करने वाले और झूठे, विभाजनकारी नैरेटिव फैलाने वालों के खिलाफ सरकार द्वारा क्या कार्रवाई की गई है? मनी लॉन्ड्रिंग, विदेशी शेल कंपनियों में अवैध रूप से अर्जित धन रखने और आम नागरिकों की गाढ़ी कमाई को लूटने के लिए घरेलू शेयर बाजार में हेरफेर करने वाले बड़े कारोबारों के खिलाफ क्या कार्रवाई हुई है?
सरमा ने अपने पत्र में कहा है कि वह गौबा को याद दिलाना चाहते हैं कि नरेंद्र मोदी सरकार ने खुद ही इसी एफसीआरए का कथित उल्लंघन करते हुए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस के लिए विदेशी स्रोतों से चंदा पाने का रास्ता बनाया था. जबकि हमने सरकार द्वारा दो एफसीआरए कानूनों को पूर्वव्यापी रूप से संशोधित करने के औचित्य का अलग से विरोध किया है, तब प्रथमदृष्टया, एफसीआरए के तहत एक राजनीतिक दल द्वारा पहले से किए गए अपराध को वैध बनाने और भविष्य में प्राप्त होने वाले विदेशी चंदे को माफ़ करने का कोई नैतिक औचित्य नहीं है, आप इसे किसी भी नाम से पुकारें, चुनावों के लिए विदेशी फंडिंग अस्वीकार्य है. राजनीतिक दलों और कारोबारी घरानों के लिए और अमन बिरादरी जैसे गैर सरकारी संगठन के लिए अलग-अलग नियम नहीं हो सकते हैं! संविधान का अनुच्छेद 14 यह कहता है कि कानून के सामने सभी नागरिकों के साथ समान व्यवहार किया जाएगा. क्या मैं सरकार से अपील कर सकता हूं कि अमन बिरादरी और हर्ष मंदर को परेशान न करें, बल्कि उनके अच्छे काम में उनका साथ दें?’
उन्होंने लिखा कि साल दर साल दोनों राष्ट्रीय दल विदेशी स्रोतों से चंदा प्राप्त करते हैं, जो 1976 के विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम (एफसीआरए) और उसके बाद 2010 में आए एफसीआरए के प्रावधानों का उल्लंघन है. कंपनियों, खासकर विदेशी कंपनियों को राजनीतिक दलों को चंदा क्यों देना चाहिए? निश्चित रूप से लोकतंत्र को बढ़ावा देने के लिए तो नहीं, बल्कि जनता की कीमत पर उन्हें मुनाफाखोरी करने में सक्षम बनाने के लिए ‘इस हाथ दे, इस हाथ दे’ के उसूल पर काम करने के इच्छुक नेता से लाभ पाने के लिए.’