मोदी और उनका हिंदुत्व ब्रिटिश राज और उसकी नीतियों के साक्षात वंशज हैं…
The Wire
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अनेक नीतियां अंग्रेजों के साम्राज्यवादी शासन से निकली हैं और उनसे असंतोष ज़ाहिर करने वालों को एक ख़तरे के तौर पर देखती हैं, ठीक वैसे ही जैसे अंग्रेज़ देखा करते थे.
कई टिप्पणीकारों की तरह ही मैं यह जानने के लिए उत्सुक रहा हूं कि जो भारत में हो रहा है, उसे कैसे समझा जाए. औपनिवेशिक गुलामी से मिली आजादी के बाद काफी हद तक मजबूत रहे लोकतंत्र के निरंकुश और भ्रष्ट तानाशाही, जहां उग्र हिंदुत्व और ज़ेनोफोबिया यानी बाहरियों के प्रति द्वेष लगातार बना हुआ है, के पतन को लेकर मैं हैरान हूं.
हमेशा की तरह हमारे पास कई व्याख्याएं मौजूद हैं, जिनकी क्रोनोलॉजी 2014 में भारत में नरेंद्र मोदी के सबसे ताकतवर बनने से लेकर, 2019 में भारतीय मतदाताओं द्वारा उन्हें फिर से शासन सौंपने तक फैली है. इसी क्रोनोलॉजी में और पीछे जाएं तो जब 2002 में गुजरात में मोदी ने दिखाया कि कैसे मुसलमानों का सफाया करना है और इस तरह उन्होंने अपने दिल्ली कूच करने की भूमिका तैयार की, वहां से लेकर 1992 में बाबरी मस्जिद ढहाने तक यह क्रोनोलॉजी फैली है.
अन्य क्रोनोलॉजी और पीछे जाती हैं. विभाजन के घावों और 1975-77 के आपातकाल तक जाती हैं, जब भले ही अस्थायी तौर पर ही सही लेकिन इंदिरा गांधी ने दिखाया कि भारतीय लोकतंत्र का गला घोंटना कितना आसान था. अन्य घटनाएं क्रोनोलॉजिकल नहीं हैं लेकिन ज़मीन पर उनका असर रहा है और वे दक्षिणपंथी तानाशाही के प्रति वैश्विक झुकाव की ओर इशारा करती हैं.
इन सभी क्रोनोलॉजी के पास उन्हें आकर्षक और स्वीकार्य बनाने के लिए कुछ न कुछ है. बहरहाल, मेरे पास पेश करने के लिए एक और क्रोनोलॉजी है जो हिंदुत्व के सतही स्वभाव के विपरीत चलती है और इसकी सार्वजनिक छवि को लेकर बनी सामान्य समझ के विपरीत है.