मलियाना दंगों और जयपुर विस्फोट केस में आरोपमुक्ति: दो फैसले और दो तरह की राजनीतिक प्रतिक्रिया
The Wire
मलियाना दंगे और जयपुर विस्फोट मामले अदालतों ने घटिया जांच और आपराधिक जांच प्रणाली में जवाबदेही की कमी की बात कही है. जहां राजस्थान में विपक्षी भाजपा के साथ कांग्रेस सरकार फैसले के ख़िलाफ़ अपील की बात कह रही है, वहीं मलियाना मामले में यूपी की भाजपा सरकार के साथ विपक्ष ने भी कोई ख़ास प्रतिक्रिया नहीं दी है.
मुझे कुख्यात मलियाना नरसंहार के बारे में ‘पैट्रियट’ अख़बार में लिखी गई मेरी रिपोर्ट स्पष्ट रूप से याद है. मई 1987 में मेरठ के बाहर मलियाना नामक एक शांत गांव को एक भीड़, जिसके साथ उत्तर प्रदेश पीएसी के कर्मी भी थे, ने घेर लिया था. भीड़ और कथित तौर पर पीएसी के जवानों ने 68 ग्रामीणों को गोली मारी थी, जिनमें लगभग सभी मुसलमान थे.
उन दिनों कोई निजी टीवी चैनल नहीं थे. उस दुर्भाग्यपूर्ण शाम को जसविंदर सिंह, जो तब एक निडर बीबीसी संवाददाता थे और मैं मेरठ में ही थे. हम दिल्ली वापस जा रहे थे कि हमें मलियाना फायरिंग के बारे में पता चला. हम स्कूटर पर सवार हुए और गांव पहुंचे. आधी रात के आसपास बीबीसी यह खबर ब्रेक की थी.
मलियाना के खौफ की यादें इस हफ्ते तब ताजा हो गईं बीते दिनों जब मेरठ की एक जिला अदालत ने नरसंहार के सभी 41 आरोपियों को बरी कर दिया.
उस दर्दनाक घटना के करीब 36 साल बाद अदालत ने सबूतों की कमी का हवाला देते हुए सभी 41 अभियुक्तों को बरी कर दिया!