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भारत ने पेगासस में दिखाई थी ख़ास दिलचस्पी, कई सालों के क़रार के लिए करोड़ों ख़र्चे

भारत ने पेगासस में दिखाई थी ख़ास दिलचस्पी, कई सालों के क़रार के लिए करोड़ों ख़र्चे

The Wire
Thursday, February 03, 2022 03:55:57 PM UTC

द न्यूयॉर्क टाइम्स के लिए काम करने वाले इज़रायल के खोजी पत्रकार रॉनेन बर्गमैन ने द वायर से बातचीत में कहा कि भारत के साथ हुए सौदे की शर्तों के अनुसार यहां की ख़ुफ़िया एजेंसियां एक बार में पचास फोन को स्पायवेयर हमले का निशाना बना सकती थीं. 

नई दिल्ली: 2017 में पेगासस की खरीद के लिए भारत और इजरायल के बीच होनेवाला गोपनीय सौदा दोनों ही देशों के शीर्ष राजनीतिक और इंटेलिजेंस नेतृत्व के ‘शीर्ष स्तर’ पर अटक गया था. ‘एंड यूजर को एक एंड यूजर सर्टिफिकेट पर दस्तखत करना होता है जिसमें वह (अंतिम उपयोगकर्ता) वचन देता है – यह (करार) इजरायली रक्षा मंत्रालय और अंतिम उपयोगकर्ता (एंड यूजर), मिसाल के तौर पर इंडियन ब्यूरो ऑफ इंटेलिजेंस के बीच होता है. तो, इंडियन ब्यूरो ऑफ इंटेलिजेंस तीन वचन देगा: एक, वह इसका इस्तेमाल सिर्फ खुद करेगा और अगर वह इसे किसी तीसरी पार्टी को देगा, तो इसके लिए इजरायल के रक्षा मंत्रालय से पूर्व इजाजत लेगा.  दूसरा वचन यह कि इसका इस्तेमाल सिर्फ आतंकवाद और संगठित अपराध के खिलाफ दिया जाएगा. इस पर दस्तखत करने के बाद ही लाइसेंस मिलता है और एनएसओ को बिक्री करने की इजाजत मिलती है.’ ‘भारत को जो मशीन बेची गई, उसकी कीमत के हिसाब से देखें, तो इसकी एक निश्चित क्षमता है, इसकी एक बैंडविड्थ (bandwidth) है, जिसे पहले ही तय कर लिया जाता है.  …लाइसेंस का मतलब किसी समय पर एक फोन की जासूसी करने की क्षमता से है. और पेगासस के बारे में मैं जितना जानता हूं, भारत को जो पेगासस बेचे गए, उसकी संख्या हालांकि सटीक तरीके से याद नहीं है, लेकिन यह 10 से 50 के बीच में है.

इजरायल के खोजी पत्रकार रॉनेन बर्गमैन ने द वायर  को बताया कि इसकी वजह विवादास्पद स्पायवेयर पेगासस में मोदी सरकार की खास दिलचस्पी और इसकी खरीद पर इसके खास जोर के कारण था. तो जैसा तय हुआ हो, उस हिसाब से इनमें से प्रत्येक 10 से 50 फोनों की निगरानी कर सकता है… एक बार जब आप इस कोटे से ऊपर चले जाते हैं, जो ऑपरेटर को किसी अन्य फोन की निगरानी को रोकना पड़ता है ताकि निगरानी किए जा रहे फोन की संख्या कोटे के भीतर रहे.’

इंटरव्यू को नीचे दिए लिंक पर देखा जा सकता है.

बर्गमैन लंबे समय से इजरायल के इंटेलिजेंस और सैन्य प्रतिष्ठानों की रिपोर्टिंग कर रहे हैं और 2007 में एनएसओ समूह के अस्तित्व में आने के बाद से ही वे उस पर नजर बनाए हुए हैं.

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