प्लाज्मा थेरेपी पर नेशनल टास्क फोर्स ने क्यों लगाई है रोक, डॉक्टरों से जानिए वजह
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नेशनल टास्क फोर्स का कहना है कि कोरोना थेरेपी प्रभावी नहीं है और कई मामलों में इसका अनुचित रूप से इस्तेमाल किया गया है. जानिए- क्या है डॉक्टरों की राय...
कोरोना संकट के बीच केंद्र सरकार ने कोविड ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल से प्लाज्मा थेरेपी को हटा दिया है. इसे लेकर आईसीएमआर और एम्स ने बड़ा फैसला लिया है. इस संबंध में AIIMS और ICMR की तरफ से नई गाइडलाइन जारी की गई है. नेशनल टास्क फोर्स का कहना है कि कोरोना थेरेपी प्रभावी नहीं है और कई मामलों में इसका अनुचित रूप से इस्तेमाल किया गया है. जानिए- क्या है डॉक्टरों की राय... aajtak से बातचीत में रेडिक्स मेडिक्स के डॉ रवि मलिक ने बताया कि प्लाज्मा को लेकर लोगों में बहुत ज्यादा दुविधाएं हैं. प्लाज्मा की इतनी डिमांड बढ गई थी कि लोग अपनों के लिए परेशान हैं. वैसे पिछली वेव में काफी मरीजों पर इस थेरेपी ने काम किया था. लेकिन इस पर आए ट्रायल ने सारी तस्वीर पलट दी है. उन्होंने बताया कि यूके में 11 हजार मरीजों पर हुए रिकवरी ट्रायल में साढ़े पांच हजार को प्लाज्मा दिया गया, बाकी को कुछ नहीं दिया. लेकिन दोनों ही तरफ 29 को वेंटिलेटर की जरूरत पड़ी. दोनों ही ओर मृत्युदर भी बराबर थी. इस ट्रायल ने क्लीयर कर दिया कि प्लाज्मा थेरेपी का कोई रोल नहीं है. चीन यूके आदि जगहों पर भी ट्रायल में सामने आया कि इसका कोई फायदा नहीं है.
भारत और यूरोप के वर्क कल्चर में फर्क को जर्मनी में काम कर रहे भारतीय इंजीनियर कौस्तव बनर्जी ने 'जमीन-आसमान का अंतर] बताया है. उनके मुताबिक, भारत में काम का मतलब अक्सर सिर्फ लगातार दबाव, लंबे घंटे और बिना रुके डिलीवरी से जुड़ा होता है, जबकि जर्मनी और यूरोप में काम के साथ-साथ इंसान की जिंदगी को भी बराबर अहमियत दी जाती है.

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