
दिल्ली में फ्लाईओवर तो लखनऊ में रेलवे ट्रैक पर मजार... कब रुकेगा सरकारी जमीनों को कब्जाने का खेल?
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अवैध मजारों को लेकर एक दूसरा खुलासा यह है कि ऐसी मजारें सिर्फ उत्तराखंड में नहीं बल्कि पूरे देश में बनी हुई हैं. खास बात यह है कि यह मजारें एक या दो दिन में नहीं बनीं, बल्कि कई वर्षों से यह मजारों का बिजनेस फैलता आ रहा है. आइए आपको देश के अलग-अलग हिस्सों में फैले इस मजार मॉडल के बारे में डिटेल में समझाते हैं.
बीते दिन गुरुवार को आजतक पर आपने उत्तराखंड में सड़कों और सरकारी संपत्ति पर बनीं अवैध मजारों के बारे में पढ़ा था. आजतक की खबर का असर इतना हुआ कि शुक्रवार को देशभर से लोगों ने वो फोटो, वीडियो भेजे जिनमें कि साफ देखा जा सकता है कि अवैध मजारें सिर्फ उत्तराखंड में नहीं बल्कि पूरे देश में बन रही हैं. खास बात यह है कि यह मजारें एक या दो दिन में नहीं बनीं, बल्कि कई वर्षों से यह मजारों का बिजनेस फैलता आ रहा है. आइए अब आपको राजधानी दिल्ली में बनीं अवैध मजारों के बारे में बताते हैं.
ऊपर दिख रही तस्वीर दिल्ली के आजादपुर इलाके की है, जहां एक फ्लाईओवर पर एक मजार बनी हुई है और स्थानीय लोगों का कहना है कि ये मजार सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा करके बनाई गई है. वर्ष 2021 में स्थानीय लोगों ने इसका विरोध भी किया था. लेकिन तब इस पर काफी राजनीति हुई और ये कहा गया कि इस मजार को फ्लाईओवर से हटाया नहीं जाएगा.
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जरा सोचिए कि मजार का मतलब क्या होता है?
बता दें कि मजार उस स्थान को कहते हैं, जहां किसी पीर बाबा या सूफी संत की कब्र होती है. तो इस आधार पर क्या यह मान लिया जाए कि इस फ्लाईओवर पर कोई कब्र थी और फिर उस कब्र के आसपास मजार के रूप में ढांचा खड़ा किया गया?
इससे भी बड़ी बात ये है कि, जिन लोगों द्वारा इस मजार की देखरेख की जाती है, उनका कहना है कि ये मजार वर्ष 1982 में बनी थी लेकिन जब हमने दिल्ली सरकार के PWD विभाग की वेबसाइट चेक की तो हमने ये पाया कि जिस फ्लाईओवर पर ये मजार बनी हुई है, उस फ्लाईओवर का उद्घाटन वर्ष 2010 में हुआ था और ये फ्लाईओवर खास तौर पर 2010 में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स (Commonwealth Games) के लिए बनाया गया था. तो ये कैसे मुमकिन है कि इससे पहले जब यहां फ्लाईओवर नहीं था तो वहां मजार बन गई?

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