
जेलों में बढ़ते कट्टरपंथ से निपटने के लिए केंद्र सरकार का बड़ा फैसला, राज्यों को भेजा डी-रेडिकलाइजेशन प्लान
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भारत सरकार ने जेलों में बढ़ते कट्टरपंथ को रोकने के लिए सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को सख्त निर्देश दिए हैं. कैदियों की स्क्रीनिंग, निगरानी, पुनर्वास और फॉलोअप सिस्टम पर जोर दिया गया है.
De-Radicalisation in Prisons India: भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने देश की जेलों में बढ़ते कट्टरपंथ (रेडिकलाइजेशन) को एक गंभीर चुनौती मानते हुए सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को एक अहम पत्र भेजा है. 1 जुलाई 2025 को जारी इस पत्र में कहा गया है कि जेलों में कई बार कैदी सामाजिक अलगाव, निगरानी की कमी और समूह गतिशीलता के चलते कट्टरपंथी विचारधाराओं के प्रभाव में आ जाते हैं, जो बाद में अपराध और हिंसा का कारण बन सकते हैं.
कैसे और क्यों बढ़ रहा है कट्टरपंथ जेलों में? जेलों का माहौल अक्सर बंद और अलग-थलग होता है. ऐसे में कैदी कट्टरपंथी विचारों के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कुछ मामले ऐसे भी सामने आए हैं, जहां कैदियों ने जेल कर्मचारियों, अन्य कैदियों या बाहर के लोगों पर हमला करने की योजना बनाई. यही वजह है कि सरकार अब इस दिशा में समयबद्ध निगरानी और हस्तक्षेप की रणनीति बना रही है.
हर कैदी की होगी गहन जांच गृह मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि जेल में आने वाले हर कैदी की स्क्रीनिंग, मानसिक, सामाजिक और स्वास्थ्य मूल्यांकन के साथ की जाएगी. इसके अलावा, समय-समय पर उनका पुनर्मूल्यांकन किया जाएगा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे किसी कट्टरपंथी नेटवर्क का हिस्सा न बनें.
उच्च जोखिम वाले कैदियों पर विशेष नजर जो कैदी चरमपंथी विचारों के प्रति झुकाव रखते हैं या संदिग्ध गतिविधियों में शामिल पाए जाते हैं, उन्हें सामान्य कैदियों से अलग हाई सिक्योरिटी विंग में रखा जाएगा. इनके ऊपर निगरानी के लिए तकनीकी उपकरणों और इंटेलिजेंस इनपुट का उपयोग किया जाएगा.
कट्टरपंथ रोकने के लिए 6 अहम उपाय-
पहचान और जोखिम आकलन (Identification & Risk Assessment) प्रत्येक कैदी का वैचारिक, व्यवहारिक और मनोवैज्ञानिक आकलन होगा. यह प्रक्रिया जेल में प्रवेश के समय और नियमित अंतराल पर की जाएगी. कानून प्रवर्तन और खुफिया एजेंसियों का सहयोग भी लिया जाएगा.

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