
गोरखपुर: गीता प्रेस के ट्रस्टी बैजनाथ अग्रवाल का 90 वर्ष की उम्र में निधन, CM योगी ने दी श्रद्धांजलि
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सन् 1933 में जन्मे हरियाणा के भिवानी के मूल निवासी बैजनाथ अग्रवाल ने महज 17 वर्ष की उम्र में सन 1950 में गीता प्रेस के एकसामान्य कर्मचारी के तौर पर अपने कार्य की शुरुआत की थी. धर्म के प्रति आगाध आस्था और संस्कृति को बढ़ावा देने की उनकी ललक को देखते हुए 1983 में उन्हें गीता प्रेस का ट्रस्टी बनाया गया.
गोरखपुर से शनिवार सुबह बहुत ही कष्टप्रद सूचना मिली. दरअसल, गीता प्रेस के ट्रस्टी और समाजसेवी बैजनाथ अग्रवाल का शनिवार सुबह हरि ओम नगर स्थित उनके आवास पर 90 वर्ष की उम्र में निधन हो गया. यह जानकारी उनके पुत्र देवी दयाल अग्रवाल ने दी. सूचना मिलते ही मानो शोक की लहर से दौड़ उठी. वही सूचना मिलते ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मृतक आत्मा के प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए शोक संतृप्त परिवार को सांत्वना दी है.
क्यों है गीता प्रेस का महत्व? गोरखपुर में स्थित गीता प्रेस अपनी 101वीं वर्ष में प्रवेश कर चुका है, साथ ही गीता प्रेस कम लागत में धार्मिक पुस्तकों के प्रकाशन के लिए जाना जाता है. धार्मिक पुस्तकों के लिए विश्व विख्यात गीता प्रेस के ट्रस्टी और समाजसेवी रहे बैजनाथ अग्रवाल का शनिवार तड़के 2.30 बजे हरिओम नगर स्थित उनके आवास पर 90 वर्ष की उम्र में निधन हो गया. लोगों को जैसे इसकी जानकारी हुई शुभचिंतकों में शोक की लहर दौड़ गई.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उनके बेटे और वर्तमान में गीता प्रेस के ट्रस्टी देवीदयाल अग्रवाल से फोन पर बातचीत की और शोकसंतृप्त परिवार के प्रति संवेदना प्रकट करते हुए मृत आत्मा के प्रति गहरा दुख व्यक्त किया है. उन्होंने कहा कि बैजनाथ जी एक मृदु भाषी समाजसेवी थे. गौरतलब है कि उनके पुण्य शरीर को काशी में ले जाया गया है, जहां उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा
जानिए उनका जीवन परिचय सन् 1933 में जन्मे हरियाणा के भिवानी के मूल निवासी बैजनाथ अग्रवाल ने महज 17 वर्ष की उम्र में सन 1950 में गीता प्रेस के एकसामान्य कर्मचारी के तौर पर अपने कार्य की शुरुआत की थी. धर्म के प्रति आगाध आस्था और संस्कृति को बढ़ावा देने की उनकी ललक को देखते हुए 1983 में उन्हें गीता प्रेस का ट्रस्टी बनाया गया. तब से लेकर 80 वर्ष की उम्र तक उन्होंने अपनी जिम्मेदारियां का बखूबी निर्वहन किया है, इस दौरान गीता प्रेस में प्रकाशित पुस्तकों से लेकर नई-नई तकनीकियों के इस्तेमाल सहित विभिन्न भाषाओं में पुस्तकों के प्रकाशन के संदर्भ में लिए गए उनके कई निर्णयों ने आज गीता प्रेस की ख्याति को और ऊपर ले जाने का कार्य किया है.
इस दौरान वह एक प्रबुद्ध समाजसेवी के रूप में भी जाने गए. एक वक्त गीता प्रेस में कर्मचारियों के बीच उत्पन्न हुए असंतोष के दौरान उन पर कई गंभीर आरोप भी लगे थे, लेकिन विचलित हुए बगैर उन्होंने सारी स्थितियों, परिस्थितियों का सामना किया और कर्मचारीयों को समझाते हुए फिर से गीता प्रेस को अपनी राह पर वापस ले आए थे, अपने जीवन के 73 वर्ष गीता प्रेस के स्वर्णिम इतिहास को समर्पित करने वाले बैजनाथ अग्रवाल की बढ़ती उम्र और अस्वस्थ होने के बाद यह जिम्मेदारी उनके पुत्र देवीदयाल अग्रवाल को सौंप दी गई, जो वर्तमान समय में ट्रस्टी के तौर पर गीता प्रेस के प्रति अपने दायित्वों का निर्वहन कर रहे हैं.
बैजनाथ अग्रवाल गीता प्रेस से 1950 से ही जुड़ गए थे. गीता प्रेस ने अभी हाल ही में अपने शताब्दी वर्ष का समापन समारोह मनाया है, साथ ही अपने 101वें वर्ष में चल रहा है, इतने लंबे सफ़र को चलने में बैजनाथ अग्रवाल ने बखूबी साथ दिया था.

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