गैंग्स ऑफ शेखावाटी: शराब के धंधे से शुरुआत, गुरु की मौत का बदला लेने की कसम... जानिए राजू ठेठ की क्राइम कुंडली
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गैंगस्टर राजू ठेठ की शनिवार को गोली मारकर हत्या कर दी गई. वारदात की जिम्मेदारी रोहित गोदारा ने ली है. उसने कहा कि आनंदपाल और बलवीर बानूड़ा की हत्या का बदला पूरा हुआ. लेकिन एक समय ऐसा भी था जब राजू और बलवीर पक्के दोस्त हुआ करते थे. दोनों एक साथ शराब का धंधा करते थे. लेकिन उनकी दोस्ती दुश्मनी में बदल गई. इसी बीच बलवीर ने राजू के गुरु गोपाल फोगावट की हत्या कर दी, इसके बाद शुरू हुआ गैंगवार का सिलसिला...
सीकर की धरती आज फिर से दहल उठी. शनिवार की सुबह राजू ठेठ की चार बदमाशों ने गोली मारकर हत्या कर दी. इस मर्डर की जिम्मेदारी लॉरेंस गैंस के सदस्य रोहित गोदारा ने ली है. लेकिन राजस्थान के शेखावाटी रीजन में गैंगवार का यह पहला केस नहीं है. बीते कुछ साल में शेखावाटी की धरती कई बार लहू से लाल हो चुकी है.
राजू ठेठ... ये नाम अपराध की दुनिया में काफी पुराना है. राजू ठेठ का आतंक गैंगस्टर आनंदपाल सिंह के अपराधी बनने से पहले से है. हालांकि आनंदपाल सिंह तो पुलिस एनकाउंटर में मारा जा चुका है. लेकिन राजू ठेठ के नाम का इस्तेमाल राजस्थान में रंगदारी और अन्य अपराधों के लिए किया जाता रहा.
राजू ठेठ ने लोगों में अपना खौफ कायम करने के लिए ये तरीका अपनाया था कि वह जब भी कहीं निकलता था तो उसके चारों ओर बंदूक लिए उसके गुर्गे उसे घेरकर चलते थे. दुश्मनों के लिए उनका सीधा संदेश होता था कि बॉस की तरफ देखा तो तुम्हारे जिस्म के टुकड़े-टुकड़े हो जाएंगे.
ऐसे हुई राजू ठेठ की अपराध की दुनिया में एंट्री
अपराध की दुनिया में राजू ठेठ की एंट्री और हत्या को समझने के लिए हमें 25 साल पहले यानी 1995 में जाना होगा. सीकर जिले का एसके कॉलेज, उस समय शेखावाटी की राजनीति का केंद्र हुआ करता था. इस कॉलेज में बीजेपी के छात्र संगठन एबीवीपी के कार्यकर्ता गोपाल फोगावट का दबदबा रहा करता था. गोपाल शराब के धंधे से जुड़ा था, जिसके चलते राजू ठेठ भी गोपाल की शरण में चला गया था.
दूध का व्यापारी बलवारी करने लगा शराब का धंधा
‘जिस घर में कील लगाते जी दुखता था, उसकी दीवारें कभी भी धसक जाती हैं. आंखों के सामने दरार में गाय-गोरू समा गए. बरसात आए तो जमीन के नीचे पानी गड़गड़ाता है. घर में हम बुड्ढा-बुड्ढी ही हैं. गिरे तो यही छत हमारी कबर (कब्र) बन जाएगी.’ जिन पहाड़ों पर चढ़ते हुए दुख की सांस भी फूल जाए, शांतिदेवी वहां टूटे हुए घर को मुकुट की तरह सजाए हैं. आवाज रुआंसी होते-होते संभलती हुई.
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