
क्या AAP सुप्रीमो पद से इस्तीफा देंगे अरविंद केजरीवाल? ये 5 बातें जान लें
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दिल्ली विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी को मिली पराजय के पाद पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल के रिजाइन की मांग उनके विरोधी कर रहे हैं. हालांकि पार्टी के अंदर से इस तरह की अभी कोई डिमांड नहीं आई है.
आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के लिए विकट स्थिति है. दिल्ली विधानसभा चुनावों में मिली पराजय के बाद उन पर हमले तेज हो गए हैं. उनके सामने पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक पद, जो पार्टी संविधान के अनुसार अध्यक्ष पद के समान ही है, से इस्तीफा देने की मांग हो रही है. दरअसल भारत की राजनीति में पार्टी अध्यक्ष जब चुनावों में अपनी पार्टी को सफलता नहीं दिला पाता है तो उससे रिजाइन की मांग होती रही है. कई नेताओं ने हार का दायित्व लेते हुए अपने पद से इस्तीफा दिया भी है. 2019 लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को मिली पराजय के बाद कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष पद से राहुल गांधी ने भी रिजाइन कर दिया था. ऐसे में अरविंद केजरीवाल के नैतिक आधार पर रिजाइन करने की बात कोई सरप्राइज नहीं है. केजरीवाल के राजनीतिक विरोधियों ने उनके रिजाइन की मांग करनी भी शुरू कर दी है. पर सवाल उठता है क्या अरविंद केजरीवाल रिजाइन करेंगे?
1- जेल जाने पर सीएम पद से रिजाइन नहीं किए तो क्या अब करेंगे?
सबसे बड़ी बात अरविंद केजरीवाल के रिजाइन को लेकर यह है कि जब मुख्यमंत्री रहते हुए जेल जाना पड़ा उन्होंने इस्तीफा नहीं दिया. उनके समकालीन झारखंड के मुख्यमंत्री रहे हेमंत सोरेन पर भी भ्रष्टाचार के आरोप में जेल जाने की नौबत आई और वो सहर्ष जेल गए. पर अरविंद केजरीवाल सीएम की कुर्सी से चिपके रहे. उन्होंने उस समय ही अगर रिजाइन करके जेल जाने की हिम्मत उठाई होती और किसी को फुल पावर देकर मुख्यमंत्री बनाए होते तो दिल्ली में गवर्नेंस के लेवल पर ये हाल नहीं हुआ होता. चुनावों में अरविंद केजरीवाल के पास दिखाने के लिए कम से स्थानीय लेवल पर हुए कुछ काम तो होते ही.
जन सुराज पार्टी के प्रमुख और चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर का भी मानना है कि अरविंद केजरीवाल का शराब नीति मामले में ज़मानत मिलने के बाद मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना एक बड़ी रणनीतिक भूल थी, जिसने पार्टी को भारी नुकसान पहुंचाया. इंडिया टुडे टीवी से खास बातचीत में प्रशांत किशोर ने कहा कि केजरीवाल को तब इस्तीफा देना चाहिए था, जब उन्हें शराब नीति मामले में गिरफ्तार किया गया था, लेकिन ज़मानत मिलने के बाद और चुनाव से पहले किसी और को मुख्यमंत्री बनाना उनके लिए एक बड़ी रणनीतिक भूल साबित हुई. अरविंद केजरीवाल के लिए फिर एक बार मौका है कि वह पार्टी प्रमुख के पद से रिजाइन करके नैतिक मिसाल कायम करें. क्योंकि उन्होंने अपनी राजनीति की शुरूआत ही राजनीतिक शुचिता और पवित्रता की स्थापना करने के लिए की थी.
2-पार्टी के बिखरने का खतरा
पर सवाल उठता है कि क्या अरविंद केजरीवाल के इस्तीफा देने से पार्टी टूट जाएगी. बहुत से राजनीतिक विश्वेषकों का मानना है कि अरविंद केजरीवाल का पार्टी से जिस दिन नियंत्रण समाप्त हो जाएगा पार्टी बिखर जाएगी. दरअसल भारत में जितनी भी क्षेत्रीय पार्टियां हैं सभी में करीब-करीब किसी खास व्यक्तित्व या परिवार के बल पर ही एकता बनी रहती है. उस खास परिवार या व्यक्ति के कमजोर पड़ते ही पार्टियां बिखर जाती रहीं हैं. हरियाणा में इनेलो, तमिलनाडु में एआईडीएमके , उड़ीसा में बीजू जनता दल, असम में असम गड़ परिषद आदि इसके उदाहरण रहे हैं. इसमें कोई 2 राय नहीं है कि अरविंद केजरीवाल के पार्टी प्रमुख पद छोड़ते ही दल में अव्यवस्था फैल जाएगी. क्योंकि पार्टी का गठन किसी विचारधारा को लेकर नहीं हुआ. पार्टी का आधार केवल और केवल सत्ता को हथियाना ही था. पार्टी अगर लेफ्ट , राइट या मंडल या कमंडल की विचारधारा वाली होती तो शायद कुछ दिन उसके कार्यकर्ता पार्टी से जरूर चिपके रहते . पर अब तो पार्टी का नैतिक आधार भी खत्म हो चुका है. यह सही है कि दिल्ली में पार्टी को 43 प्रतिशत वोट मिले हैं. पर यह 11 साल से सत्ता में रही पार्टी के तंत्र का कमाल है. जैसे ही पार्टी बिखरना शुरू होगी कांग्रेस जैसे उसका वोट भी कम होता जाएगा.

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