कौन थे रजाकार, जो 80 फीसदी से ज्यादा हिंदू आबादी वाले हैदराबाद को बनाना चाहते थे इस्लामिक मुल्क?
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यता सत्यनारायण के डायरेक्शन में बनी Razakar फिल्म हिंदी में रिलीज हो चुकी. इसमें उस वक्त के हैदराबाद की कहानी है, जो भारत में विलय नहीं हुआ था. आखिरी निजाम उसे तुर्किस्तान बनाना चाहते थे. इस काम में उनकी मदद कर रहे थे रजाकार. ये वो बर्बर पैरा-मिलिट्री थी, जिसके आगे तालिबानी हिंसा भी कम पड़ जाए.
लोकसभा चुनाव 2024 के बीच एक बार फिर रजाकारों की चर्चा हो रही है. इसमें एक योगदान हाल में रिलीज हुई फिल्म रजाकार का तो है, साथ ही राजनैतिक तौर पर गरमा-गरमी दिख रही है. हैदराबाद से भाजपा प्रत्याशी माधवी लता ने बयान दिया कि महिलाओं का सड़कों पर चलना, या हिंदुओं का मंदिरों में पूजापाठ मुश्किल हो चुका, और इसकी वजह रजाकारों से लगाव रखने वाले लोग हैं. माना जा रहा है कि माधवी AIMIM लीडर असदुद्दीन ओवैसी को निशाने पर ले रही हैं. जानिए, कौन थे रजाकार, क्या संबंध था हैदराबाद से और कैसे वे गायब हो गए?
कौन थे रियासत के आखिरी नवाब
रजाकारों पर जानने से पहले एक बार हैदराबाद के आखिरी निजाम को जानते चलें, जो उस जमाने में देश के सबसे अमीर, लेकिन उतने ही कंजूस और अय्याश शख्स माने जाते थे. उनका पूरा नाम था- मीर उस्मान अली खान सिद्दकी असफ-जाह. कहा जाता है कि वे टेबल पर रखे दस्तावेजों को पेपरवेट की बजाए हीरे से दबाया करते, लेकिन खाने में टिन के बर्तनों का इस्तेमाल करते.
हैदराबाद रियासत के इस नवाब का सियासी दिमाग खूब चलता था. उन्होंने हर उस सत्ता से दोस्ती की, जो हैदराबाद के पड़ोसी राज्यों के खिलाफ थे. खासकर अंग्रेजों से. यहां तक कि जब पूरे देश में अंग्रेजी हुकूमत को हटाने की मुहिम चली हुई थी, निजाम अपनी वफादारियां निभा रहे थे. सत्ता बचाए रखने का यही हुनर था, जो बहुसंख्यक हिंदुओं वाली रियासत भी भारत की आजादी के आंदोलन का सीधा हिस्सा नहीं बन सकी.
हैदराबाद को अलग मुल्क बनाने की ख्वाहिश
लोकसभा चुनाव अपने पांचवे चरण में पहुंच गया है. ऐसे में सियासी गर्मी भी बढ़ती जा रही है. एक तरफ बीजेपी है जो अपने दावे पर अडिग है कि अबकी बार 400 पार. दूसरी तरफ विपक्ष है जिसे ये पूरी उम्मीद है कि बीजेपी 200 सीटें भी नहीं जीत पायेगी. सवाल ये है कि आखिर किसके दावे में ज्यादा दम है? देखें गुजरात बुलेटिन.