
इरफान मुझसे कहता था भाई मुझे नसीर जैसा एक्टर बनना है...
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7 जनवरी को इरफान खान की बर्थ एनीवर्सरी है. इरफान दुनिया में ना होकर भी उनके निभाए गए किरदारों के लिए याद आते हैं. फिल्मों में आने से पहले इरफान खान थिएटर के मंझे हुए कलाकार थे. आइये महान एक्टर की बर्थ एनीवर्सरी पर उनसे जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा जानते हैं.
मन्नू भंडारी के उपन्यास 'महाभोज' पर आधारित नाटक में इरफ़ान ने एक लठैत की भूमिका निभाई थी. वह गांव के सरपंच का लठैत था. वह उसका शुरुआती दौर था. दरअसल, इरफ़ान ने जो अपना थिएटर करियर शुरू किया, उसके पहले की थोड़ी बातें जान लें. जयपुर में पहले जवाहरात का धंधा होता था. इस धंधे में जयपुर की मुस्लिम आबादी के 70-80% लोग जुड़े हुए थे. उनमें कुछ व्यापारी थे. कुछ कारीगर थे. एक जमाने में जयपुर में पन्ने का धंधा खूब तेजी से बढ़ा और उसमें कई मुस्लिम परिवार अमीर हो गए. ऐसे मुस्लिम परिवारों के बच्चों का एक ग्रूप था, जो थिएटर वगैरह किया करता था.
वे सब सिनेमा देखकर बहुत मुतासिर होते थे. उन्हें एक्टिंग का शौक था. वे लोग नाटक भी करते थे. उनके नाटक पूरे फिल्मी हुआ करते थे. ‘जलता बदन' जैसे नाटक होते थे. ऐसे ही एक ग्रुप के साथ इरफ़ान ने अपनी शुरुआत की थी.
थिएटर के मंझे हुए कलाकार थे इरफान खान हम लोग मेनस्ट्रीम थिएटर से जुड़े हुए थे, पर शौकिया थिएटर वाले कभी-कभी हमें बुला लिया करते थे. एक बार उन्होंने कहा कि कभी हमारा थिएटर भी आकर देखो ना? मैं चला जाया करता था. मैंने पाया कि उनके थिएटर में भारी भीड़ होती थी और हमारे मेनस्ट्रीम थिएटर में तो दर्शक आते ही नहीं थे. उनके नाटकों के टिकट भी बिक जाते थे.
ऐसे ही एक नाटक में इरफ़ान एक रोल कर रहा था. नाटक खत्म होने के बाद डायरेक्टर ने सभी कलाकारों से मिलवाया. वहीं इरफ़ान से मुलाकात हुई. वह अपने एटीट्यूड से पूरे ग्रुप से अलग लग रहा था. उसकी बॉडी लैंग्वेज भी अलग थी. उन दिनों वह पढ़ाई कर रहा था. मैंने उसे कहा तुम कहां यह सब कर रहे हो? तुम मेनस्ट्रीम थिएटर में आ जाओ. अगर थिएटर में रुचि है, तो कुछ बेहतर करो. बाद में वह मेनस्ट्रीम से जुड़ा. उसके साथ उन दिनों यूनुस खुर्रम थे. बाद में वह प्रदीप भार्गव और रवि चतुर्वेदी की संगत में आया.
एक्टिंग के प्रति था समर्पण मैंने पाया कि थिएटर के प्रति उसके मन में बहुत समर्पण था. वह नसीरुद्दीन शाह से बहुत प्रभावित था. मुझसे कहता था साबिर भाई मुझे नसीर जैसा एक्टर बनना है. मैंने कहा बन जाओगे. बस तुम ग्रेजुएशन करो. उसके बाद एनएसडी चले जाना. शायद 1985 में उसका एनएसडी में एडमिशन हुआ. उन दिनों में दिल्ली में था. दिल्ली में एनएसडी के ही ग्रेजुएट भानु भारती, जो नसीरुद्दीन शाह के सीनियर थे, एक प्ले कर रहे थे और मैं उनके प्ले में लाइट देख रहा था. मैं यूसुफ से मिलने एनएसडी गया था. वहीं बाहर खड़े हो के हम लोग चाय पी रहे थे.
सुबह का वक्त था और इरफान वहां आया. मैंने पूछा कि तुम जयपुर से आए हो, तो उसने कहा, नहीं मैं तो चंडीगढ़ से आ रहा हूं. उसने बताया कि मैं तो चंडीगढ़ में एडमिशन लूंगा और मोहन महर्षि के साथ पढ़ लूंगा. तब मोहन महर्षि चंडीगढ़ में हुआ करते थे. वहां एक साल का डिप्लोमा कोर्स होता था. अभी भी चलता है. मैंने उसे कि तुम एनएसडी का फॉर्म भर दो. उसकी जिद थी कि नहीं मैं मोहन महर्षि के सुझाव दिया साथ चंडीगढ़ में पढ़ेंगा. वहीं अच्छी तरह से सीख लूंगा. उस समय एनएसडी के डायरेक्टर की पोस्ट खाली थी और मोहन महर्षि के आने की बात चल रही थी.

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