
अमेरिकी सहकर्मियों ने भारतीय टीम को बनाया 'डंपिंग ग्राउंड' , डेटा साइंटिस्ट की पोस्ट वायरल
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एक भारतीय डेटा साइंटिस्ट ने एक पोस्ट शेयर किया है, जिसमें उसने कहा कि अमेरिका में उनके सहकर्मी भारतीय टीम को सिर्फ़ काम का बोझ डालने के लिए इस्तेमाल करते थे. कपिल का कहना है अमेरिकी सहकर्मी बस भारतीय टीम को काम सौंपते, बेकार की मीटिंग करते, और फिर आराम से लॉग ऑफ कर देते हैं.
एक भारतीय डेटा साइंटिस्ट कपिल भट्ट ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म एक्स पर अपना अनुभव शेयर किया, जो अब वायरल हो रहा है. कपिल भट्ट ने आरोप लगाया कि अमेरिका में उनके सहकर्मी बिना विचार किए नियमित रूप से भारतीय टीम पर काम का बोझ डाल देते हैं. उन्होंने आगे कहा कि मेरे अमेरिकी सहकर्मी भारतीय टीम के साथ अपने निजी कामों का डंपिंग ग्राउंड जैसा व्यवहार करते थे. उनका मानना था कि कोई भी बोरिंग काम है भारतीय टीम को दे दो. भारतीय टीम को काम भेजो, बेकार की मीटिंग करो, आराम करो और लॉग ऑफ कर दो.
भारतीय लोग शिकायत नहीं करते इस पोस्ट पर कई लोगों ने प्रतिक्रिया दी है. कुछ ने कहा कि भारतीय लोग शिकायत नहीं करते और हर बात मान लेते हैं, यहां तक कि रात 11 बजे की कॉल भी. किसी ने लिखा कि अमेरिका ही नहीं, यूरोप के कई देशों में लोग अपने निजी समय को सबसे ऊपर रखते हैं और काम का बोझ भारतीयों की तरह चुपचाप नहीं उठाते. कुछ लोगों ने इसे कंसल्टेंसी मॉडल से जोड़ा, जहां कंपनियां पैसों के लिए हर काम मान लेती हैं. लिंक्डइन प्रोफाइल के अनुसार भट्ट, इस समय छुट्टी पर हैं, पहले भी अमेरिका में अपने काम और जीवन के बारे में पोस्ट कर चुके हैं.
सोशल मीडिया पर पोस्ट वायरल इस पोस्ट पर एक यूजर ने कहा- मेरी सोसाइटी के सभी आईटी लोग मुझे यही बात कहते रहते हैं. जाहिर है, ऑन-साइट काम करने वाले भारतीय भी भारत में अपनी टीम के साथ ऐसा ही करते हैं और सिर्फ पीआर रिव्यू करते हैं. एक अन्य यूज़र ने कहा, "हां, मेरी कंपनी में भी यही होता है. समस्या यह है कि भारत में लोग शिकायत नहीं करते. लोगों को अमेरिकी टीमों को कुछ देना शुरू कर देना चाहिए. अगर उन्हें ज़्यादा वेतन मिलता है, तो उन्हें ज्यादा काम भी करना चाहिए.
दूसरे यूजर ने कहा – सिर्फ अमेरिका ही नहीं, मैंने फ्रांस, इटली और रोमानिया में भी काम किया है. वहां लोग अपने काम और निजी जिंदगी के बीच संतुलन को बहुत महत्व देते हैं. वे दूसरों पर काम का बोझ नहीं डालते, बल्कि अच्छे कौशल वालों को और सम्मान देते हैं. कई बार ये सम्मान पैसों से भी ज्यादा अहम होता है. एक और यूजर ने बताया- ये सिर्फ कल्चर नहीं, बल्कि कंसल्टेंसी कंपनियों का मॉडल भी है. उन्हें घंटों का बिल मिलता है, इसलिए वे "ना" नहीं कहते. बाहर काम करना सस्ता पड़ता है, इसलिए सालों से ऐसा होता आ रहा है. वहां भी होशियार लोग होते हैं, लेकिन कंपनियों को बस काम पूरा चाहिए, चाहे जैसे हो.

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