
अफगानिस्तान, श्रीलंका, पाकिस्तान... और अब बांग्लादेश, एशिया के देशों में क्यों दम तोड़ रही डेमोक्रेसी?
AajTak
सवाल उठता है कि सैन्य शासन का हाल देख लेने और समझ लेने के बावजूद तख्तापलट क्यों होता है? आज ये सवाल इसलिए भी मौजूं है कि भारत का एक और पड़ोसी देश, जो कभी पाकिस्तान का ही हिस्सा था, और 1947 में हुए बंटवारे में भारत से अलग हुआ तो 1973 में पाकिस्तान से टूट कर अलग मुल्क बना, वहां भी तख्तापलट हो गया.
पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान की राजनीति के प्रसिद्ध विशेषज्ञ डॉ. चार्ल्स एच. कैनेडी ने एक चर्चित आर्टिकल लिखा था. इसका शीर्षक था, 'अ यूजर गाइड टू गाइडेड डेमोक्रेसी'. इस आर्टिकल में उन्होंने व्यंग्यात्मक रूप से 10 Steps की रूपरेखा तैयार की थी जो पाकिस्तान के किसी भी नए शासक के लिए, अपना शासन मजबूत करने में मदद कर सकते थे.
खासतौर पर जिनका उपयोग पाकिस्तान के सभी सैन्य तानाशाहों ने लगभग करते भी आ रहे थे. ये आर्टिकल पाकिस्तान के 1947 से शुरू हुए इतिहास पर आधारित था और इसमें उन सभी सैन्य तख्तापलट की कहानी थी, जो पाकिस्तान में 1958, 1978 और 1999 में हुए थे. खास बात ये कि सभी सैन्य शासकों ने तख्तापलट के बाद जिस रणनीति का इस्तेमाल किया, वह लगभग एक जैसी थीं.
इनमें शामिल थे, राजनीतिक विरोधियों को परेशान करना, संविधान से छेड़छाड़, सरकारी सिस्टम में हेरफेर और कानूनों का इस्तेमाल सिर्फ अपने बचाव के लिए करने की रणनीति. जाहिर तौर पर पाकिस्तानी आवाम इन सैन्य शासनों से त्रस्त ही रही है, लेकिन इसके बावजूद पाकिस्तान ऐसे मुल्क का उदाहरण है, जहां कई बार तख्तापलट हुए हैं और मौजूदा स्थिति में भी इसका डर बना रहता है.
क्यों होते हैं तख्तापलट? सवाल उठता है कि सैन्य शासन का हाल देख लेने और समझ लेने के बावजूद तख्तापलट क्यों होता है? आज ये सवाल इसलिए भी मौजूं है कि भारत का एक और पड़ोसी देश बांग्लादेश, जो कभी पाकिस्तान का ही हिस्सा था, वहां एक बार फिर से तख्तापलट हो गया. हालांकि बांग्लादेश का इतिहास भी पाकिस्तान की ही तरह तख्तापलट वाला रहा है. सोमवार को बांग्लादेश की पीएम रहीं शेख हसीना को हिंसक विरोध-प्रदर्शनों के बीच इस्तीफा देना पड़ा और नौबत यह आ गई कि उन्हें मुल्क भी छोड़ना पड़ गया. आज जिस स्थिति में पूर्व पीएम शेख हसीना और बांग्लादेश हैं, यह स्थिति दक्षिण एशिया के कई देशों की रही है, जिनमें बांग्लादेश और पाकिस्तान के ही साथ म्यांमार, अफगानिस्तान और श्रीलंका भी शामिल है. सवाल ये है कि मांग और जरूरत के बावजूद इन देशों में डेमोक्रेसी दम क्यों तोड़ देती है? सवाल ये है कि तख्तापलट इतनी आसानी से कैसे हो जाते हैं?
पाकिस्तान में क्यों स्थापित नहीं है स्वस्थ लोकतंत्र? पाकिस्तान पर लौटते हैं. यहां लोकतंत्र का ढिंढोरा तो खूब पीटा गया, लेकिन हकीकत ये है कि 1947 में भारत से विभाजन के ही साथ यहां सेना का हस्तक्षेप सत्ता में रहा है और इस पड़ोसी मुल्क ने कई दशक सैन्य शासन में ही गुजारे हैं. आज तक पाकिस्तान के इतिहास में एक भी प्रधानमंत्री ने अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया, या फिर कि उन्हें करने नहीं दिया गया. या तो सेना ही सत्ता में रही है या फिर सत्ता में सेना ऐसा दांव चलती है कि सत्ता और यहां तक कि अफसरों को खुद भी सेना के सांठ-गांठ में ही चलना होता है. आजाद होने के साथ ही सेना ने अपने प्रभुत्व का ऐसा अहसास कराया है कि पड़ोसी मुल्क की आवाम इससे निकल ही नहीं पायी है.
सेना ने कैसे जमाया पाकिस्तान में प्रभुत्व? बीबीसी की एक रिपोर्ट में किंग्स कॉलेज लंदन में डिपार्टमेंट ऑफ मिलिट्री स्टडीज की सीनियर फेलो और पाकिस्तानी मामलों की विश्लेषक आयशा सिद्दिकी कहती हैं कि, 'पाकिस्तान के लिए सुरक्षा का मुद्दा सबसे अहम रहा है. यही वजह है कि सेना को यहां शुरू से ही अहमियत मिल गई. फिर धीरे-धीरे यह उस स्थिति में आ गई जहां वह राजनीति को प्रभावित कर सके. दूसरे विश्वयुद्ध के बाद सेना काफी महत्वपूर्ण हो गई क्योंकि वहां राष्ट्र की सुरक्षा सबसे अहम मुद्दा बन गई थी. इसके बाद सेना एक स्वायत्त संस्थान बन गई."

आजतक के साथ रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की खास बातचीत में आतंकवाद विषय पर महत्वपूर्ण विचार साझा किए गए. इस बातचीत में पुतिन ने साफ कहा कि आतंकवादियों का समर्थन नहीं किया जा सकता. उन्होंने कहा कि यदि आजादी के लिए लड़ना है तो वह कानून के दायरे में होना चाहिए. पुतिन ने ये भी बताया कि आतंकवाद से लड़ाई में रूस भारत के साथ मजबूती से खड़ा है.

जॉइंट प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, 'पंद्रह साल पहले, 2010 में, हमारी साझेदारी को स्पेशल प्रिविलेज्ड स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप का दर्जा दिया गया था. पिछले ढाई दशकों में राष्ट्रपति पुतिन ने अपने नेतृत्व और विजन से इस रिश्ते को लगातार आगे बढ़ाया है. हर परिस्थिति में उनके नेतृत्व ने हमारे संबंधों को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है.

आजतक के साथ रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ ग्लोबल सुपर एक्सक्लूसिव बातचीत की. आजतक से बातचीत में राष्ट्रपति पुतिन ने कहा कि मैं आज जो इतना बड़ा नेता बना हूं उसके पीछे मेरा परिवार है. जिस परिवार में मेरा जन्म हुआ जिनके बीच मैं पला-बढ़ा मुझे लगता है कि इन सब ने मिलाकर मुझे वो बनाया है जो आज मैं हूं.

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने आजतक के साथ खास बातचीत में बताया कि भारत-रूस के संबंध मजबूत होने में वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का महत्वपूर्ण योगदान है. पुतिन ने कहा कि वे पीएम मोदी के साथ काम कर रहे हैं और उनके दोस्ताना संबंध हैं. उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि भारत को प्रधानमंत्री मोदी के साथ काम करने पर गर्व है और वे उम्मीद करते हैं कि मोदी नाराज़ नहीं होंगे.

आजतक के साथ रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की एक खास बातचीत की गई है जिसमें उन्होंने रूस की इंटेलिजेंस एजेंसी की क्षमता और विश्व की सबसे अच्छी एजेंसी के बारे में अपने विचार साझा किए हैं. पुतिन ने कहा कि रूस की इंटेलिजेंस एजेंसी अच्छा काम कर रही है और उन्होंने विश्व की अन्य प्रमुख एजेंसियों की तुलना में अपनी एजेंसी की क्षमता पर गर्व जताया.

भारत आने से पहले रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने आजतक की मैनेजिंग एडिटर अंजना ओम कश्यप और इंडिया टुडे की फॉरेन अफेयर्स एडिटर गीता मोहन के साथ एक विशेष बातचीत की. इस बातचीत में पुतिन ने वैश्विक मुद्दों पर खुलकर अपनी राय दी, खासतौर पर रूस-यूक्रेन युद्ध पर. उन्होंने स्पष्ट किया कि इस युद्ध का दो ही समाधान हो सकते हैं— या तो रूस युद्ध के जरिए रिपब्लिक को आजाद कर दे या यूक्रेन अपने सैनिकों को वापस बुला ले. पुतिन के ये विचार पूरी दुनिया के लिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि यह युद्ध अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गहरी चिंता का विषय बना हुआ है.







