
Taali Review: नहीं गूंज पाई 'ताली' की आवाज, फीके निकले सुष्मिता के तेवर, दमदार कहानी की डायलॉग्स ने बचाई लाज
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गौरी की लड़ाई एक प्रेरणा देने वाली कहानी है. ये कहानी ही इसलिए बन पाई है, क्योंकि ये आसान नहीं है. इससे एक इतिहास जुड़ा है. सुप्रीम कोर्ट में थर्ड जेंडर को मान्यता दिलवाने वाली गौरी, महाराष्ट्र इलेक्शन कमेटी की ब्रांड एम्बैसेडर बनने वाली पहली ट्रांसजेंडर गौरी की आपबीती बयां करना असल में मुश्किल काम है. ऐसे में डायरेक्टर कितना सफल हो पाए हैं, पढ़ें हमारा रिव्यू और जानें.
बड़े होकर क्या बनोगे? 'मुझे मां बनना है. गोल गोल चपाती बनानी है. सबका ख्याल रखना है.' इस तरह के सवाल पर जब एक पुलिस वाले का बेटा ऐसा जवाब दे तो बच्चों के बीच हंसी का पात्र बनना तो तय है. आप भी यही सोच रहे होंगे. लेकिन जवाब अगर एक ऐसा बच्चा दे, जो अपनी मूल पहचान से जूझ रहा है, तो आप क्या कहेंगे? एक ऐसा मानव शरीर जिसने जन्म तो लड़के के रूप में लिया है, लेकिन उसकी अंतर-आत्मा उसे चीख-चीख कर लड़की होने का एहसास दिला रही है. ऐसी ही एक कहानी को उजागर करती है, सुष्मिता सेन की हालिया रिलीज वेब सीरीज 'ताली'. तो चलिए आपको बताते हैं, कैसी है ये सीरीज, करते हैं रिव्यू.
ताली का ओवरव्यू सबसे पहले बात करते हैं 'ताली' सीरीज की कहानी की. ताली एक बायोग्राफिकल ड्रामा है, जो कि ट्रांसजेंडर एक्टीविस्ट श्रीगौरी सावंत की जिंदगी पर आधारित है. सीरीज दावा करती है कि इसमें श्रीगौरी के जीवन के हर जरूरी पहलुओं को दिखाया गया है. सीरीज में उनके ट्रांस का पता होने से लेकर बनने तक की पूरी स्टोरी को दिखाया गया है. गौरी यानी गणेश 13-14 साल की उम्र में घर से भाग गयी था, क्योंकि वो अपने पिता के लिए ताउम्र शर्मिंदगी का कारण नहीं बनना चाहता था. यहीं से गणेश का गौरी बनने का सफर शुरू होता है. गौरी ने जिंदगी की हर मुश्किल का सामना किया, हमेशा हालातों से लड़ीं लेकिन कभी ना तो भीख मांगी, ना ही कभी सेक्स वर्कर बनने की राह चुनी. गौरी ने खुद एक इंटरव्यू में बताया था, इसकी वजह उनका सुंदर ना होना है शायद. ना तो वो गोरी हैं, ना ही इतनी सुंदर की किसी को लुभा सकें, इसलिए शायद वो बच भी पाईं.
और ताली सीरीज यहीं पर पहली बार चूक कर जाती है. मेकर्स गौरी की इस मेन बात पर ही रिसर्च करना शायद भूल गए. क्योंकि सीरीज में असली गणेश के लुक से इतर दिखने वालीं एक्ट्रेस कृतिका देओ हैं. हालांकि कृतिका ने अपने रोल से पूरा जस्टिफाई किया है, लेकिन आप उसे गणेश से रिलेट करने पाने में असहज महसूस करेंगे. जैसा कि बॉलीवुडिया सिनेमा में अक्सर गोरी रंगत को लेकर एक ऑब्सेशन देखा गया है, वो यहां भी दिखाई पड़ता है. एक व्यूवर के तौर पर ये बहुत अखरता है. क्योंकि गणेश यानी गौरी का बचपन ऐसी छहरहरी काया-गोरी रंगत वाला नहीं था, जैसा कि पोट्रे कर दिया गया है. ऐसे में आपकी सोच रिएलिटी से परे हो जाती है.
किस रफ्तार से बजी ताली पहला एपिसोड शुरू होता है गौरी के बचपन गणेश से...जहां वो मां के आंचल में खुद को सुरक्षित महसूस करता है. उनके जैसे बनने के सपने देखता है, लेकिन पिता की धिक्कारती नजरें उससे बर्दाश्त नहीं होती है. हालांकि बड़ी बहन का साथ मिलता है. पर अचानक हुई मां की मौत के बाद अकेला पड़ा गणेश उस घर को छोड़कर भाग जाता है, और शुरू करता है अपना सफर- ट्रांसजेंडर बनने का. सीरीज में गौरी की तीन लड़ाई को दिखाने की पुरजोर कोशिश की गई है. पहली लड़ाई- आईडेंटिटी की, दूसरी लड़ाई- सर्वाइवल की, तीसरी लड़ाई- इक्वालिटी की. लेकिन इक्वालिटी की लड़ाई दिखाने के चक्कर में गणेश के गौरी बनने की कहानी कहीं अपना दम तोड़ बैठी.
गणेश का अपनी जिंदगी को अपने तरीके से जीने की सोच और ट्रांस कम्यूनिटी की तरफ झुकाव को बखूबी दिखाया गया है. लेकिन परिवार का साथ ना मिल पाने का अफसोस और वो शर्मिंदगी, जो समाज के ना अपनाने से मिलता है, उसे ऑडियन्स को फील ना करा पाने की चूक जरूर हो गई है. आर्या में दमदार एक्टिंग की छाप छोड़ चुकीं सुष्मिता सेन भी कहीं कहीं ढीली पड़ती नजर आई हैं. मसलन सेक्स चेंज ऑपरेशन का सीन हो या किन्नर की जिंदगी से इन्फ्लुएंस होने का, सुष्मिता हल्की सी लगीं. खासकर उनके आदमी बने रहने का लुक, बहुत ओवरहाइप्ड लगता है. लेकिन वहीं कई डायलॉग सीरीज के ऐसे हैं, जिन्हें जब वो बोलती हैं तो लगता है बस यहीं ये कहानी रुक जाए. जैसे इसी का तो इंतजार था.
सब्जेक्ट से हुआ इन्जस्टिस

आशका गोराडिया ने 2002 में एक यंग टेलीविजन एक्टर के रूप में एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में कदम रखा था. 16 साल बाद उन्होंने सब कुछ छोड़ दिया. इसका कारण थकान नहीं, बल्कि एक विजन था. कभी भारतीय टेलीविजन के सबसे यादगार किरदार निभाने वाली आशका आज 1,800 करोड़ रुपये की वैल्यूएशन वाली कंपनी की कमान संभाल रही हैं.












