
3 जून 1947: 'मैंने हिंदुओं से ज्यादा मुसलमानों का पक्ष लिया...', इंडिया को मिलता लाहौर, लेकिन बेईमानी कर गए रेडक्लिफ, ये था ओरिजिनल पार्टिशन प्लान!
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78 साल की लंबी अवधि. लेकिन इतिहास की यादें धूमिल कहां होती है. आज ही के दिन 3 जून 1947 को गवर्नर जनरल माउंटबेटेन ने भारत-पाकिस्तान बंटवारे की घोषणा की थी. ये वो तारीख थी जब अविभाजित हिन्दुस्तान के नक्शे पर कुछ लाइनें खिंच दी गई और करोड़ों लोगों के दिल में कभी न मिटने वाली पहचान बना दी गई. शहर लाहौर बंटवारे में यूं तो इंडिया को मिला था, लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ कि लाहौर को भारत से अलग कर दिया गया. बेदर्दी से...
India-Pakistan partition: लाहौर...इस शहर की तारीख अराजक रही है. गजनवी, मंगोल, मुगल, अफगानी, सिख और फिर ब्रितानिया. लगभग हजार साल में इस शहर ने दर्जनों बार अपना लिबास बदला. मार काट, हमला, दंगे... कई बार ये शहर रौंदा गया, इस शहर की मिट्टी को रौंदने वाले तो इतिहास में फना हो गए, लेकिन इस नगर ने अपनी अलमस्ती बचा ली. इसलिए कहने वाले कहते हैं कि ये शहर नहीं है एक लत है. इस शहर की ओबा हवा में वो मतवालापन है.
साहित्यकार असगर वजाहत ने अपने नाटक का नाम जब ‘जिन लाहौर नहीं वेख्या ओ जनम्याई नई' (जिसने लाहौर नहीं देखा वो पैदा ही नहीं हुआ) दिया तो उन्होंने लाहौरी तहजीब को बिरादर, सहोदर और मोहब्बत की वो तरावट देने की कोशिश की जो बंटवारे के वक्त सूख सा गया था. असगर वजाहत ही नहीं कई अदीबों जैसे राजेंद्र बेदी, कृश्न चंदर और सआदत हसन मंटो ने मुल्क के तक्सीम होने पर इंसानी संवेदनाओं को अपनी रचनाओं में प्रस्तुत किया.
1947 में सर सिरील रेडक्लिफ ने अविभाजित हिन्दुस्तान के नक्शे पर कुछ लाइनें खिंची इसी के साथ ही लाखों लोगों की जिंदगी में कभी न मिटने वाली लकीरें उकेर दी गईं. फिर जिनकी सुबहें अमृतसर में अरदास और शामें लाहौर की मंडियों में तिजारत करते गुजरतीं उनके लिए महज 50 किलोमीटर का ये दायरा कभी न खत्म होने वाला फासला बन गया. ये फासला तारीख में जख्म बनकर रिसता रहा.
पंजाब का साझा इतिहास दो भागों में बंट गया
17 अगस्त 1947 को ये ऐलानिया तौर पर स्थापित हो गया कि लाहौर पंजाब से अलग हो गया है. कहा जाता है कि तब पाकिस्तान के हिस्से कोई मुकम्मल शहर न आ रहा था, इसलिए इसकी भरपाई लाहौर से की गई. इसी के साथ पंजाब का साझा इतिहास दो भागों में बंट गया और वजूद में आए दो शब्द. चढ़दे पंजाब और लहंदे पंजाब. जी हां, हिंदी भाषियों के लिए इसका अर्थ जानना थोड़ा कठिन है. लहंदे पंजाब का अर्थ है पाकिस्तान का पंजाब और चढ़दे पंजाब का मतलब भारत के हिस्से में आया पंजाब.
लाहौर के पंजाब से अलग होने की पटकथा क्या है? इसके किरदार कौन कौन हैं? चलिए उन दस्तावेजों को पलटते हैं जब इतिहास हमारे वर्तमान की कहानी लिख रहा था.

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