17 साल बाद जब खत्म हुआ केस तो भावुक होकर रोने लगा यूपी का यह पूर्व पुलिस अधिकारी
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उत्तर प्रदेश सरकार ने यूपीएसटीएफ के पूर्व डिप्टी एसपी शैलेंद्र सिंह पर दर्ज मुकदमे को वापस ले लिया है. वाराणसी की सीजेएम कोर्ट ने योगी सरकार के फैसले को मंजूरी दे दी है. केस वापस लिए जाने के बाद शैलेंद्र सिंह ने योगी सरकार का शुक्रिया अदा किया है. आइए जानते हैं क्या था वो वह मामला जिसको बयान करते समय सख्त पुलिस अफसर की आंखों में भी आंसू आ गए. आजतक के साथ उन्होंने उस पूरे मामले को साझा किया.
उत्तर प्रदेश सरकार ने यूपीएसटीएफ के पूर्व डिप्टी एसपी शैलेंद्र सिंह पर दर्ज मुकदमे को वापस ले लिया है. वाराणसी की सीजेएम कोर्ट ने योगी सरकार के फैसले को मंजूरी दे दी है. केस वापस लिए जाने के बाद शैलेंद्र सिंह ने योगी सरकार का शुक्रिया अदा किया है. आइए जानते हैं क्या था वो वह मामला जिसको बयान करते समय सख्त पुलिस अफसर की आंखों में भी आंसू आ गए. आजतक के साथ उन्होंने उस पूरे मामले को साझा किया. (लखनऊ से कुमार अभिषेक की रिपोर्ट) पूर्व डीएसपी ने बताया कि मुझपर केस वापस करने का बड़ा दबाव बनाया गया. लोगों ने मुझसे कहा कि आप मुख्तार का नाम नहीं लेंगे. अब मुख्तार अंसारी केस का मैं वादी बनकर अपने बयान से कैसे पलट सकता हूं, यह संभव नहीं है.इसके बाद बहुत तरीके से मुझे फिर प्रताड़ित किया गया. अधिकारी भी मुझसे कहने लगे मुख्यमंत्री मुलायम सिंह आपसे काफी नाराज हैं तो मैंने कहा कि मैं मुलायम सिंह जी से मिलकर अपनी बातें साफ करना चाहता हूं. आखिर में जब बात बहुत ही खराब हो गई तो मैंने पहला रेजिग्नेशन भेजा और मैंने अपने उस त्याग पत्र में लिखा था कि अब अपराधी यह तय कर रहे हैं कि मुझे क्या करना है. पहला रेजिग्नेशन स्वीकार नहीं हुआ तब मैंने दूसरा रेजिग्नेशन भेजा क्योंकि मुलायम सिंह कहने लगे कि एक पॉलिटिकल रेजिग्नेशन है. बाद में मैंने दूसरा रेजिग्नेशन भेजा. मैंने साफ कर दिया कि मैं आपके साथ काम नहीं कर सकता. पूर्व डीएसपी ने आगे कहा कि तब आपको याद होगा 2003 में कैंट थाने में मुख्तार और कृष्णानंद राय के बीच क्रॉस फायरिंग हुई थी. तब हमें टास्क दिया गया था कि इन दोनों को वॉच करिए नहीं तो बड़ा हादसा हो सकता है. सेना का भगोड़ा बाबूलाल यादव मुख्तार अंसारी से बात कर रहा था और वह हर हाल में किसी कीमत पर वह एलएमजी खरीदना चाहता था क्योंकि वह इस एलएमजी से कृष्णानंद राय को मारना चाहता था. यह सब कुछ रिकॉर्ड पर है. मैंने पोटा लगाया था लेकिन मुलायम सिंह सरकार ने उस पर मंजूरी नहीं दी. साधारण आर्म्स एक्ट लगाया जिससे मुख्तार बच गए.विपक्ष अपना नंबर 295 सीट का बताता है, लेकिन एग्जिट पोल के अनुसार एनडीए 400 पर पहुंचता दिखता है. विपक्ष का दावा है कि ये एग्जिट पोल नहीं, मोदी मीडिया पोल है. विपक्ष का गणित और जनता का फैसला, दोनों में से कौन सही है? एग्जिट पोल के अनुसार एनडीए के मुकाबले विपक्ष लीड बनाता दिखाई नहीं देता. बीजेपी के खिलाफ विपक्षी गठबंधन भी अपने ही शासन वाले राज्य में बीजेपी को पीछे नहीं कर पाया. आखिर विपक्ष के अनुमान पर एग्जिट पोल के आंकड़ों को क्यों नहीं होता?
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