होली के रंगों का क्या है वैज्ञानिक महत्व? 5 रंग के अबीर से होगा आपका भाग्योदय
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इस त्योहार का सम्बन्ध भगवान शिव और भगवान कृष्ण दोनों से ही माना जाता है. भगवान शिव का भस्माभिषेक होता है और उनका पूर्ण श्रृंगार किया जाता है. जबकि कृष्ण के साथ रंग और फूलों की होली खेली जाती है.
होली का पर्व भक्त प्रह्लाद की भक्ति और भगवान द्वारा उसकी रक्षा के स्वरूप में मनाया जाता है. माना जाता है कि इसी दिन कामदेव का पुनर्जन्म हुआ था. मनु का जन्म भी इसी दिन माना जाता है. कहीं-कहीं यह भी मान्यता है कि इसी दिन भगवान कृष्ण ने पूतना का वध किया था. इस त्योहार का सम्बन्ध भगवान शिव और भगवान कृष्ण दोनों से ही माना जाता है. भगवान शिव का भस्माभिषेक होता है और उनका पूर्ण श्रृंगार किया जाता है. जबकि कृष्ण के साथ रंग और फूलों की होली खेली जाती है. तांत्रिक मान्यताओं के अनुसार यह आध्यात्मिक पर्व है. इस बार होली 29 मार्च को मनाई जाएगी. होली खेलने के पीछे की वैज्ञानिक मान्यता क्या है? होली के पहले मन में उदासी और तनाव का भाव होता है. अलग अलग रंग उस उदासी और तनाव को दूर कर देते हैं. ढेर सारे लोगों से मेल मुलाकात के कारण मन की कड़वाहट भी दूर हो जाती है. सुगंध और रंग मिलकर मन और शरीर को नया सा कर देते हैं. क्या है होली खेलने का विधान? रंग या अबीर के खेलने के पूर्व उसको भगवान को जरूर समर्पित कर देना चाहिए. अपनी अपनी इच्छाओं के अनुसार अगर ऐसा कर सकें तो सर्वोत्तम होगा. होलिका दहन से लाये गयी राख़ (भस्म) से शिव लिंग का अभिषेक करना भी शुभ फल प्रदान करता है. अलग-अलग राशियों के लोगों को अलग अलग रंग से होली खेली चाहिए. अगर आपको आपकी राशी नहीं मालूम है तो अपनी विशेष इच्छा की पूर्ति के लिए विशेष रंग से होली खेलने का प्रयास करें.More Related News