हिजाब पर आर-पार के मूड में क्यों और कैसे आ गई हैं ईरान की महिलाएं?
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ईरान की महिलाएं हिजाब के खिलाफ सड़कों पर प्रदर्शन कर रही हैं. उनकी आंखों में गुस्सा है, अधिकारों को हासिल करने का जुनून है. शायद इसलिए हिजाब को लेकर बेहद सख्त कानून होने के बाद भी ईरान की महिलाएं महसा अमिनी की मौत पर गमजदा हैं. ईरान की पुलिस का हिजाब को लेकर ऐसे सलूक का ये पहला मामला भी नहीं है.
दुनिया के 195 देशों में से 57 मुस्लिम बहुल हैं. इनमें से 8 में शरिया कानून का सख्ती से पालन होता है. लेकिन सिर्फ 2 देश ही ऐसे हैं, जहां महिलाओं को घर से निकलने पर हिजाब पहनना अनिवार्य है. ये दो देश हैं शिया बहुल ईरान और तालिबान शासित अफगानिस्तान. ईरान में किसी महिला के इस कानून को तोड़ने पर बेहद सख्त सजा दी जाती है. उसे 74 कोड़े (चाबुक) लगाने से लेकर 16 साल की जेल तक हो सकती है. इतनी सख्ती के बाद भी ईरान की 72 फीसदी आबादी हिजाब को अनिवार्य करने के खिलाफ है.
वैसे, ईरान में हिजाब को लेकर विवाद कोई नई बात नहीं. ये सिलसिला करीब एक दशक से जारी है. लेकिन इस बार पुलिस कस्टडी में 22 साल की महसा अमिनी की मौत ने 'एंटी हिजाब' मूवमेंट को और ज्यादा भड़का दिया है. अमिनी को बिना हिजाब राजधानी तेहरान में घूमने पर गिरफ्तार किया गया. अरेस्ट होने के कुछ देर बाद ही वो कोमा में चली गईं और 3 दिन बाद (16 सितंबर) को पुलिस कस्टडी में उनकी मौत हो गई.
अब ईरान में जगह-जगह महिलाएं एंटी हिजाब कैंपेन चला रही हैं. शहर के किसी भी चौक-चौराहे पर महिलाओं की भीड़ इकट्ठा होती है और सामूहिक रूप से हिजाब उतारकर विरोध दर्ज कराया जाता है. खौफनाक सजा को दरकिनार कर ईरान जैसे कट्टरवादी देश में महिलाएं अपने अधिकारों के लिए सड़कों पर प्रोटेस्ट कर रही हैं.
चार दशक पहले ऐसा नहीं था ईरान
43 साल पहले तक ईरान ऐसा नहीं था. पश्चिमी सभ्यता का बोलबाला होने के कारण यहां खुलापन था. पहनावे को लेकर कोई रोकटोक नहीं थी. महिलाएं कुछ भी पहनकर कहीं भी आ-जा सकती थीं. 1979 ईरान के लिए इस्लामिक क्रांति का दौर लेकर आया. शाह मोहम्मद रेजा पहलवी को हटाकर धार्मिक नेता अयातुल्लाह खोमैनी ने सत्ता की बागडोर अपने हाथ में ले ली और पूरे देश में शरिया कानून लागू कर दिया.
हिजाब के खिलाफ कब शुरू हुए प्रोटेस्ट