'हर पूरा चांद आखिरी रात लगता है', कहानी सुंदरबन के जलसमाधि लेते द्वीप और उम्मीद खो चुके लोगों की!
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'शादी के बाद सिनेमा गई थी. पिक्चर में शहर देखा. पक्के घर. गाड़ियां. यहां से वहां तक पसरी सड़क. तब से सपनों में शहर आता. जाने की हूक उठती है, लेकिन जा नहीं सकती. हमारी किस्मत पानी में समा जाना ही है.' तांत की साड़ी में सिर पर छोटा-सा अंचरा किए झुंपा हिलककर रो नहीं देती. इसकी जरूरत भी नहीं. भांय-भांय करती हवा और सबकुछ निगल जाने को तैयार पानी अपने-आप में सोगगीत है. झुंपा की आवाज इसी में डूबती-उतराती है.
हरहराता हुआ खारा पानी. नारियल-खजूर के पेड़ और मुर्दा फेफड़ों में जान फूंक दे ऐसी ताजा हवा. पहली नजर में तस्वीर-सा खूबसूरत लगता सुंदरबन का घोरामारा द्वीप आखिरी सांसें गिन रहा है. रोज इसकी जमीन का एक टुकड़ा भूखी लहरों का निवाला बन जाता है. हर पूरे चांद पर यहां के किनारे थोड़ा भीतर सरक आते हैं और तूफान का हर अलर्ट लोगों को धरती की आखिरी आवाज लगता है.ये कहानी है- पानी में समाने का इंतजार कर रही जिंदगियों की...डूबती उम्मीदों की...और रोज थोड़ा-थोड़ा खुदकुशी कर रहे एक द्वीप की. कुछ वक्त पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में कच्चातिवु का जिक्र किया था. इंदिरा गांधी के कार्यकाल में ये हिंदुस्तानी द्वीप एक समझौते के तहत श्रीलंका को दे दिया. दक्षिणी हिस्से में स्थित कच्चातिवु के लिए आज भी तमिलनाडु कसक से भरा रहता है. कई बार इसे श्रीलंका से वापस लेने की बात भी उठी.ये तो हुआ वो आइलैंड, जो पहले ही हमारे हाथ से निकल चुका. लेकिन सुंदरबन में कई ऐसे द्वीप हैं, जिनके नाक-नक्शे पानी ही बना-मिटा रहा है. घोरामारा इनमें सबसे ऊपर है. बीते 6 दशकों में इसकी जमीन का आधे से ज्यादा हिस्सा पानी में समा गया. घर-स्कूल-सरकारी दफ्तर सब एक-एक करके डूब गए. अब करीब 5 वर्ग किलोमीटर में फैला द्वीप मौत का जिंदा इश्तेहार हो चुका. ये रोज किस्तों में डूब रहा है, किसी भी रोज पूरा का पूरा जलमग्न हो जाने के इंतजार में.
कोलकाता से करीब 90 किलोमीटर की सड़क यात्रा के बाद काकद्वीप घाट आता है. यहां हमें एक नाव में बिठाया गया. मछली पकड़ने वाली नाव, जिसमें जोड़-घटाव करके लोगों के बैठने लायक बना दिया गया.
ऊपर लिखा है- घोरामारा लॉट 8 फेरी सर्विस.
यही नाव आइलैंड तक आती-जाती है. दिन में कुल 3 फेरे, जो पानी के चढ़ने-उतरने से कम भी हो सकते हैं. पानी बहुत घट जाए तो चट्टानों से टकराने का खतरा. ज्यादा हो जाए तो लकड़ी का ये टुकड़ा चिरैया सा डोलने लगे.अभी भी यही हाल है. तेज हवा और ऊंची लहरें बार-बार उसे यहां से वहां पटक देतीं.किनारे से सरकते हुए बीच में आई मैं कसकर एक मूठ पकड़ लेती हूं. बचाव के इंतजाम के नाम पर कुछ टायर बंधे हुए. पूछने पर जवाब आया- सुंदरबन का बच्चा खाना और तैरना साथ-साथ सीखता है. फिर ये टायर? ‘ये विदेशियों (बंगाल के बाहर से आए लोग) के लिए हैं.’ रोज द्वीप और शहर के बीच सफर करने वाला एक यात्री बताता है. बंधे हुए टायर को खोलकर खुद में फंसाने में कितना वक्त लगेगा, और क्या मगरमच्छों और सांपों से भरे पानी में इससे बचा भी जा सकेगा, ये सवाल मन में ही टंका रहता है. तभी तसल्ली देती हुई आवाज आती है- चिंता कोरबेन ना. पानी में यहां इतनी उठापटक है कि तैरने वाला भी डूबेगा ही!करीब 40 मिनट के समुद्री सफर के बाद घोरामारा दिखा. यहां से वहां बेतरतीब ढंग से उखड़ा हुआ. ब्रेड के अधखाए टुकड़े की तरह, जिसे किसी ने जल्दबाजी में कुतरकर छोड़ दिया हो. नाव किनारे लगने पर समझ आया कि द्वीप पर तो कोई घाट ही नहीं. कितना भी मजबूत घाट वहां टिक नहीं सकेगा.
फिर उस पार कैसे जाएंगे! जबाव दिए बगैर नाववाला लकड़ी का एक फट्टा निकालकर नाव और जमीन के बीच एडजस्ट करने लगा. पतला-सा फट्टा हर वजन के साथ चर्र-चर्र बोलता हुआ, लेकिन लोग फुर्ती से दूसरी तरफ जा रहे हैं. गोद में बच्चे उठाए औरतें. हाथ में मछली पकड़ने का सामान और मछलीदार बाल्टियां उठाए आदमी. मैं और मेरे एक साथी इंतजार करते हैं. वो इंतजार, जो सब्र की बजाए डर से आता है. द्वीप के अनऑफिशियल गाइड अरविंद कलास भरोसा देते हुए हमें उस पार उतारते हैं. उतरते ही काकद्वीप जाने के लिए तैयार कुछ लोग दिखे. शहराती आंखें. हाथों में कैमरा. पता लगा कि वे लोग कोलकाता के ही रहने वाले हैं, सिंकिंग आइलैंड पर किसी प्रोजेक्ट के लिए आए हुए थे. शहर से इस द्वीप का इतना ही नाता है.लोग आएंगे. देखेंगे. च्च-च्च कहेंगे. और लौट जाएंगे उस दुनिया में, जो कयामत की भविष्यवाणी भी चटखारे लेकर सुनती है. मैं खुद भी इसी दुनिया का हिस्सा हूं. लेकिन फिलहाल लानतों का वक्त नहीं. हम आगे बढ़ते हैं, जहां झुंपा मिलेंगी.
23 साल की बेहद फुर्तीली ये लड़की बात-बात पर हंसती है. ‘लव-मैरिज’ - शर्मीली हंसी से बताती है. लड़का-लड़की दोनों घोरामारा के. कुल जमा 1 हजार घर. बार-बार टकराते और दिल मिल गया. कैमरा ऑन हो चुका. हम सहेलियों की तरह बतियाते हैं. आज कौन सी सब्जी बनाई?. पोस्तो (खसखस) और चिचिंगा (तोरई) का भाजा. कभी द्वीप से बाहर गई हैं? नहीं. एक बार काकद्वीप गई थी शादी के बाद. शहर के बारे में कुछ जानती हैं? हां, सिनेमा में देखा था. कोलकाता, दिल्ली, बंबई का नाम सुन रखा है. जाना चाहती हूं लेकिन जा नहीं सकती. पति बाहर रहता है. ससुर का तीन बार ऑपरेशन हो चुका. हम गरीब हैं. खाने को नहीं जुटता तो घूमने को कैसे जाएं! एक छोटी-सी चुप्पी के बाद आगे कहती हैं- यही मेरा संसार है. चाहे जब डूबे. चाहे जितना रहे.मौत स्वीकार कर चुके लाइलाज बीमारी के मरीज जैसा कोई भी भाव चेहरे पर नहीं. झुंपा लगातार हंस रही हैं. शोकसभा के बीच अचानक खिलखिला उठे बच्चे जैसी हंसी. इतनी सहज युवती के घरेलू जीवन में थोड़ी और ताकझांक करने पर पता लगा कि द्वीप पर गहनों-कपड़ों की कोई दुकान नहीं. मॉल तो भूल ही जाइए. न कोई सिनेमाहॉल है, न अस्पताल.
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